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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेखकोंका भी नम्रतापूर्वक अनुसरण करनेका यत्न किया है। वर्षोंसे टॉल्स्टॉय मेरे गुरुओंमें से एक रहे हैं। जो लोग आगेके अध्यायोंमें प्रस्तुत विचारोंका अनुमोदन ढूंढ़ना चाहें उन्हें स्वयं इन विचारकोंके शब्दोंमें अनुमोदन इनका मिल जायेगा। पाठकोंकी सहूलियतके लिए कुछ पुस्तकोंके नाम परिशिष्टमें दे दिये गये हैं। २०४ मुझे पता नहीं कि 'हिन्द स्वराज्य' पुस्तक भारतमें जब्त क्यों कर ली गई ? मेरी दृष्टिमें तो यह जब्ती ब्रिटिश सरकार जिस सभ्यताका प्रतिनिधित्व करती है उसके निन्द्य होनेका अतिरिक्त प्रमाण है। इस पुस्तकमें हिंसाका तनिक-सा भी समर्थन कहीं किसी रूपमें नहीं है। हाँ, उसमें ब्रिटिश सरकारके तौर-तरीकोंकी जरूर कड़ी निन्दा की गई है। अगर मैं यह न करता तो मैं सत्यका, भारतका और जिस साम्राज्यके प्रति वफादार हूँ उसका द्रोही बनता। वफादारीकी मेरी कल्पनामें वर्तमान शासन अथवा सरकारको, उसकी न्यायशीलता या उसके अन्यायकी ओरसे आँखें मूंदकर चुपचाप स्वीकार कर लेना नहीं आता। न्याय और नीतिके नामपर वह आज जो कर रही है उसे मैं नहीं मानता। बल्कि मेरी वफादारीकी यह कल्पना इस आशा और विश्वासपर आधारित है कि नीतिके जिस मानदण्डको सरकार आज अस्पष्ट और पाखण्डपूर्ण ढंगपर सिद्धान्त-रूपमें स्वीकार करती है उसे वह भविष्यमें कभी व्यवहारमें भी स्वीकार करेगी। परन्तु मुझे साफ तौरसे मान लेना चाहिए कि मुझे ब्रिटिश साम्राज्यके स्थायित्वसे इतना सरोकार नहीं है जितना भारतकी प्राचीन सभ्यताके स्थायित्वसे है; क्योंकि मेरी मान्यता है कि वह संसारकी सर्वोत्तम सभ्यता है। भारतमें अंग्रेजी राज्य आज आधुनिक और प्राचीन सभ्यताके बीचके संघर्षका प्रतीक है। इनमें से एक शैतानका राज्य है और दूसरा ईश्वरका । एक युद्धका देवता है और दूसरा प्रेमका। मेरे देशवासी आधुनिक सभ्यताकी बुराइयोंके लिए अंग्रेज जातिको दोषी ठहराते हैं। इसलिए वे समझते हैं कि अंग्रेज लोग बुरे हैं, न कि वह सभ्यता जिसका वे प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए वे यह मानते हैं कि अंग्रेजोंको देशसे निकालनेके लिए उन्हें आधुनिक सभ्यता और हिंसाके आधुनिक तरीके अपनाने चाहिए। 'हिन्द-स्वराज्य' यह दिखानेके लिए लिखा गया है कि यह आत्मघांतकारी नीतिपर चलना होगा। उसका उद्देश्य यह दिखाना भी है। कि अगर वे अपनी गौरवमयी सभ्यताका ही पुनः अनुसरण करेंगे तो अंग्रेज या तो उसको स्वीकार कर लेंगे और भारतीय वन जायेंगे या भारतसे उनका अधिकार ही उठ जायेगा । J पहले इस अनुवादको 'इंडियन ओपिनियन' में छापनेका विचार था । परन्तु मूल पुस्तकके जब्त हो जानेके कारण ऐसा करना उचित नहीं जान पड़ा। 'इंडियन ओपि- नियन' ट्रान्सवालके सत्याग्रह-संग्रामका प्रतिनिधित्व करता है। इसके अलावा उसमें आम तौरपर दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंकी शिकायतें भी प्रकाशित की जाती हैं। इसीलिए यह वांछनीय समझा गया कि इस तरहके प्रातिनिधिक पत्रमें मेरे व्यक्तिगत विचार प्रकाशित न किये जायें। ये विचार खतरनाक या राजद्रोहात्मक भी माने जा १. देखिए हिन्द-स्वराज्यका परिशिष्ट-१, पृष्ठ ६५-६६ । Gandhi Heritage Portall