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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लगभग ५० पौंड पीड़ित परिवारोंके मकानोंका किराया चुकानेके लिए दिये जा रहे हैं। इसलिए हम यह विचार कर रहे हैं कि क्या उन्हें किसी फार्ममें ले जाना ठीक होगा। वहाँ स्त्रियाँ और पुरुष जीविका अर्जित करनेके लिए कोई काम कर सकते हैं और वहाँ सहायतामें जो धन इस समय व्यय किया जा रहा है, सम्भवतः उसका आधा हम वचा सकेंगे ।

फार्मपर लगानेके लिए पूँजीकी कुछ कठिनाई थी। श्री काछलिया, जेलसे बाहर मौजूद दूसरे लोग और मैं पूंजी लगानेकी भी जोखिम उठानेके लिए तैयार थे; क्योंकि हम आशा करते थे कि यदि आवश्यकता हुई तो संघर्षके समाप्त होनेपर उस फार्मको बेच सकेंगे। परन्तु सम्भवतः बड़ी पूंजी लगानेकी आवश्यकता नहीं होगी, क्योंकि एक यूरोपीय मित्रने कहा है कि वे एक फार्म खरीद देंगे और उसे जबतक सत्याग्रह चले तबतकके लिए सत्याग्रहियोंको बिना कुछ लिये दे देंगे। यह अति उदारताका प्रस्ताव लगभग स्वीकार कर लिया गया है और जब यह पत्र आपके हाथ में होगा तबतक वे शायद एक उपयुक्त फार्म प्राप्त कर चुके होंगे और [ ऐसा हुआ तो ] उसमें समस्त पीड़ित परिवार और मैं साथ-साथ रह रहे होंगे।

ऊपर जिन खर्चोंका ब्योरा दिया गया है, उनमें उस सहायताका उल्लेख नहीं है जो व्यक्तियों द्वारा निजी तौरपर दी जा रही है।

मैं अब देखता हूँ कि मैंने आपको सक्रिय सत्याग्रहियोंका जो अन्दाज लगा कर दिया था, वह कम था। और बहुत-से लोग, जिनके बारेमें मैंने सोचा था कि वे आगे नहीं आयेंगे, सजा काट रहे हैं या निर्वासित कर दिये गये हैं। हालमें अधिकारी भारतीयोंको, खासकर बहादुर तमिलोंको, गिरफ्तार करने में बहुत सक्रिय हो गये हैं। संघर्षके सम्बन्ध में उनसे ज्यादा अच्छा काम भारतीयोंके अन्य किसी वर्गने नहीं किया है। इन वीर पुरुषोंने बार-बार जेल यात्रा की है । डीपक्लूफ जेलमें इस समय उनकी संख्या तीससे ऊपर है। डीपक्लूफ घोर अपराधियोंकी बस्ती है। ट्रान्सवालकी अन्य जेलोंकी अपेक्षा यहाँके विनियम बहुत कड़े हैं। उमलोटी जहाजसे लगभग ६० भारतीय निर्वासित किये जा चुके हैं और तीससे ऊपर किसी दिन निर्वासित किये जा सकते हैं। इनके निर्वासनकी आज्ञाएँ दी जा चुकी हैं। इन निर्वासनोंके बारेमें मैं यथेष्ट संयमके साथ नहीं लिख सकता। ये सब लोग ट्रान्सवालके अधिवासी हैं। इनमें से कुछ नेटालके भी अधिवासी हैं। फिर कुछको नेटाल में प्रवेश करनेका अधिकार है, क्योंकि वे उस उपनिवेशके प्रवासी अधिनियम के अन्तर्गत शैक्षणिक परीक्षा पास कर सकते हैं। कुछ तो केवल लड़के हैं; वे ट्रान्सवालमें या दक्षिण आफ्रिकाके अन्य भागोंमें जन्मे हैं। बहुत से लोगोंके परिवार यहीं हैं, और उनका पालन- पोषण इस देशमें ही हुआ है। मैं इन निर्वासित लोगोंकी वीर पत्नियों, बहनों या माताओंसे प्राय: मिलता रहता हूँ। एक बार मैंने पूछा कि क्या वे निर्वासितोंके साथ भारत जाना पसन्द करेंगी ? उन्होंने क्रोधमें भरकर कहा- 'हम कैसे जा सकती हैं ? हम जब बच्ची थीं तभी इस देशमें आई थीं। भारतमें हम किसीको नहीं जानतीं। भारत जाने की अपेक्षा हम यहाँ मर-मिटना अधिक पसन्द करेंगी, क्योंकि भारत हमारे लिए विदेश है।