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पत्र : गो० कृ० गोखलेको

राष्ट्रीय दृष्टिकोणसे उनका यह मनोभाव कितना ही शोचनीय क्यों न प्रतीत हो, असलि- यत यह है कि इन पुरुषों और स्त्रियोंकी जड़ें दक्षिण आफ्रिकाकी भूमिमें जम गई हैं। संघर्ष आरम्भ होनेसे पहले इनमें से बहुत से लोग अच्छी जीविका अर्जित करते थे। कुछके पास दूकानें थीं, कुछ ट्रॉली-ठेकेदार थे और कुछ फेरीवाले, सिगार बनानेवाले, होटलोंके नौकर आदि थे। नौकर कमसे-कम ६ पौंड और अधिकसे-अधिक १५ पौंड तक मजदूरी पाते थे और ट्रॉली-ठेकेदार और दूसरे लोग, जिनके पेशे स्वतन्त्र थे, २० से ३० पौंड प्रतिमास तक पैदा करते थे । ये सब अब गरीब हो गये हैं और इनके परिवारोंको सत्याग्रह-कोषसे निर्वाह-योग्य न्यूनतम पैसे मिलते हैं।

आपकी जानकारीके लिए मैं यह बता दूं कि किसी समय सरकारकी ओरसे कहा गया था कि जिन्होंने ट्रान्सवालमें स्वेच्छया पंजीयन (रजिस्ट्रेशन) करा लिया है, जैसा कि इन निर्वासितोंमें से बहुतोंने कराया है, वे कतई निर्वासित नहीं किये जाते हैं और जो ट्रान्सवालके अतिरिक्त दक्षिण आफ्रिकाके किन्हीं दूसरे भागोंके अधिवासी हैं वे भारतको नहीं, बल्कि उन्हीं भागोंको भेजे जाते हैं ये दोनों बातें अमलमें नहीं आ रही हैं और इसके लिए कारण यह बताया गया है कि ये लोग शिनाख्तका व्योरा देने और अपना अधिवास प्रमाणित करनेसे इनकार करते हैं। पहली चीज़ निरर्थक है, क्योंकि शिनाख्तका ब्योरा देनेसे इनकार करना अपने आपमें एक अपराध है और यह देखते हुए कि इन लोगोंने अपने आपको स्वेच्छया पंजीकृत घोषित किया है, इनके विरुद्ध शिनाख्तका ब्योरा देनेसे इनकार करनेसे सम्बन्धित उक्त विशेष खण्डके अन्तर्गत मुकदमा चलाया जा सकता था। उनसे अपंजीकृत (अन-रजिस्टर्ड) भारतीय-जैसा व्यवहार करने और उन्हें इस प्रकार निर्वासित करनेका कोई कारण नहीं था। दूसरा कारण भी इतना ही निरर्थक है, क्योंकि जिन्हें, नेटालमें प्रवेश करनेका अधिकार था उन्होंने कहा था कि वे वहाँके अधिवासी हैं और जिन्हें किसी यूरोपीय भाषाका ज्ञान था, उन्हें कोई सबूत पेश करनेकी आवश्यकता नहीं थी । मेरी रायमें असलियत यह है कि वीर तमिलोंकी स्वाभिमानकी भावनाको कुचलनेमें असफल होनेके कारण एशियाई महकमेने हमें खत्म करनेकी और हमारे आर्थिक साधनोंपर बहुत अधिक बोझ डालनेकी योजना बनाई है। जो भी हो, मुझे लगता है कि मैं आपको और आपके माध्यमसे भारतकी जनताको यह विश्वास ठीक ही दिला रहा हूँ कि चाहे ये लोग हों चाहे इनकी पत्नियाँ, माताएँ या बहनें, उनमें से किसीके भी, कोई खास, हार मानने की सम्भावना नहीं है ।

मुझे आशा है कि जबतक ट्रान्सवालके विधानमें, जिसके विरुद्ध हम लड़ रहे हैं, किया गया मातृभूमिका अपमान दूर नहीं कर दिया जाता तबतक मातृभूमि चैन न लेगी और हमें अबतक जो सहायता मिली है, वह आगे भी मिलती रहेगी।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

गांधीजीके हस्ताक्षरोंसे युक्त टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रति (जी० एन० ३७९९), और ७-५-१९१० के 'इंडियन ओपिनियन' से। Gandhi Heritage Portal