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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कष्ट इसलिए दिये जा रहे हैं कि एक कानून, जिसे अब एक तमादी चिट्ठा माना जाता है, रद नहीं किया गया; और उच्च शिक्षा प्राप्त ब्रिटिश भारतीयोंके, ब्रिटिश अथवा अन्य यूरोपीयोंके समान ही, ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेके सैद्धान्तिक कानूनी अधिकारको मान्य नहीं किया जा रहा है।

जिस संघ में ऊपर बताई गई स्थिति जारी है वह एशियाइयोंके किस कामका हो सकता है ? वे तो देखते हैं कि उनके विरुद्ध सारी ताकतें मिलकर एक हो गई हैं। कहा जाता है, संघके निर्माणसे साम्राज्यकी शक्ति बढ़ गई है। क्या वह अपनी शक्ति और महत्ताके दबावसे सम्राट्के एशियाई प्रजाजनोंको कुचल देगा ? निःसन्देह, यदि सम्राट्ने संघ- राज्यकी स्थापनाके अवसरपर दिनी जूलूको क्षमा-दान दिया है तो यह सही और मुनासिब ही हुआ है। इससे दक्षिण आफ्रिकाके वतनियोंके लिए यह अवसर विशेष रूपसे महत्त्वपूर्ण बन गया है। उनके दिलोंपर स्वभावतः दिनी जूलूकी रिहाईका असर बड़ा अच्छा होगा । क्या दक्षिण आफ्रिकाके एशियाइयोंकी माँगें मंजूर कर लेना उतना ही उचित नहीं होगा ? इससे वे भी यह महसूस कर सकेंगे कि दक्षिण आफ्रिकामें अब नई और कल्याणकारी भावनाका उदय हुआ है और मैं यह कहनेकी घृष्टता करता हूँ कि उनकी इन माँगोंको इस महाद्वीपके हर दस समझदार यूरोपीयोंमें से नौ यूरोपीय सचमुच वाजिब मानते हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-६-१९१०

१९८. महामहिम सम्राट्को जन्मदिवसपर सन्देश'

[ जून ३, १९१०]

ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय भक्तिपूर्वक सम्राट्को उनकी वर्षगाँठके अवसरपर बधाई देते हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-६-१९१०

१. एक जूलू नेता; देखिए खण्ड ७, पृष्ठ ४२२ । रिहाईके बाद उसे ट्रान्सवालमें एक फार्मपर बसा दिया गया था, जहाँ अक्तूबर १९१३ में उसकी मृत्यु हो गई ।

२. ब्रिटिश भारतीय संघकी ओरसे भेजे गये इस सन्देशका मसविदा अनुमानतः गांधीजीने तैयार किया था। इसके जवाब ९ जुलाई, १९१० को भेजी गई प्राप्ति सूचनामें तार भेजनेकी तारीखका उल्लेख हैं । यह प्राप्ति सूचना १६-७-१९१० के इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित की गई थी । Gandhi Heritage Porta