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पत्र : अखबारोंको

हूँ । आपके इस प्रस्तावको स्वीकार करता हूँ और यह कहनेकी आवश्यकता नहीं कि इससे आर्थिक भार बहुत कम हो जायेगा ।

आपके पत्रके अनुच्छेद २ और ३ में जिन परिवर्तनों और परिवर्धनोंका उल्लेख है उनके खर्चका मैं सही-सही हिसाब रखूंगा । आप उसकी जाँच कर सकेंगे और मैं आपकी स्वीकृति बिना इन परिवर्तनों या परिवर्धनोंका काम हाथमें नहीं लूंगा ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-६-१९१०

१९७. पत्र : अखबारोंको

जोहानिसबर्ग,
जून २, १९१०

महोदय,

संघ-राज्यके प्रारम्भपर दक्षिण आफ्रिकाकी यूरोपीय कौमोंने सर्वत्र खुशियाँ मनाईं । आशा की गई थी कि इस खुशीमें एशियाई भी शरीक होंगे। अगर वे इन उम्मीदोंको पूरी नहीं कर सके हैं तो, जहाँतक ट्रान्सवालका सम्बन्ध है, इसका कारण ढूँढ़ना बहुत कठिन नहीं है। जिस दिन संघ राज्यका समारम्भ हुआ, उसी दिन लगभग साठ परिवारोंसे उनके रोजी कमानेवाले छीन लिये गये। इनका भरण-पोषण सार्वजनिक चन्देसे किया जा रहा है। जिस दिन संघने अपना काम शुरू किया, एक सुसंस्कृत भारतीय और पारसी कौमके प्रतिनिधि, श्री सोराबजी फिर गिरफ्तार कर लिये गये । इससे पहले वे छः बार जेलकी सजा भुगत चुके हैं । वे डीपक्लूफ जेलसे छूटनेके बाद एक महीनसे कुछ ही अधिक बाहर रह पाये थे । अब उनके निर्वासनकी आज्ञा हुई है । दूसरे सत्याग्रहियोंकी भी गिरफ्तारियाँ बराबर जारी हैं। बैरिस्टर और कैम्ब्रिजके स्नातक श्री जोज़ेफ रायप्पन और उनके साथी भी जेल भेज दिये गये हैं । ये सारे आप जो कुछ इमारती सामान परिवर्तन, परिवर्धन या सुधार करने में लगायेंगे, उसे आप यहाँसे जानेपर खुशीसे ले जा सकेंगे या मैं उनका मूल्य चुका दूँगा । यह मूल्य हस्वमामूल आँक लिया जायेगा । भुगतानकी शर्तें हम आपसमें तय कर लेंगे । मैं उन सभी कृषि सम्बन्धी सुधारोंका, जिन्हें उस फार्मपर बसनेवाले लोगोंने किया हो, खर्च देनेका भी प्रस्ताव करता हूँ । उस खर्चका अन्दाज भी हस्वमामूल लगा लिया जायेगा । संघर्ष की समाप्तिके बाद फार्मपर बसनेवाले लोग फार्मसे चले जायेंगे ।

हृदयसे आपका,
एच० कैलेनबैक

१. बुधवार, जून १, १९१० ।