पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/३२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



२८४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी जा सकते हैं और नहीं भी दिये जा सकते हैं । किन्तु फिलहाल बहादुर सोराबजी अपने कर्तव्यका पालन कर रहे हैं और यदि दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंको उनके कष्टोंपर दुःख है तो साथ ही उन्हें इस बातपर खुशी भी होनी चाहिए कि उनके एक भाईपर सारे भारतको गर्व है । भारतकी मुक्ति बाहरी मददपर नहीं, बल्कि उस आन्तरिक विकासपर निर्भर करती है जिसका उदाहरण श्री सोराबजीने पेश किया है ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनयन, ४-६-१९१०

२०१. भायात

हम श्री ए० एम० भायातको उनकी वीरतापर बधाई देते हैं । उन्होंने खोलवड़ समाजकी लाज रख ली है और हाइडेलबर्गकी प्रतिष्ठा बढ़ाई है। उन्होंने जेलको पवित्र किया है। यदि दूसरे बहुत-से भारतीय व्यापारी भी श्री भायातका अनुकरण करते या करें तो अन्तमें उनको और समाजको लाभ ही होगा। बेशक पहले तो श्री भायातकी तरह दुःख सहन करना पड़ेगा और पैसेका नुकसान भी उठाना होगा, लेकिन अन्तमें लाभ ही होगा । श्री भायातने समाजके लिए अपना स्वास्थ्य भी खो दिया है । उनका वजन कम हो गया है । लेकिन उन्होंने उसकी परवाह नहीं की। इसमें शक नहीं कि हम जीतेंगे। इस जीतका श्रेय श्री भायात जैसे सत्याग्रहियोंको ही मिलेगा, जो बार-बार जेल जा रहे हैं ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ४-६-१९१०

२०२. डॉ० मेहताको भेजे गये पत्रका अंश

[ टॉल्स्टॉय फार्म
जून ४, १९१० के बाद

...फार्ममें जितनी रोटियोंकी जरूरत होती है, वे राय यह है कि ये अच्छी बनती हैं। सारी मैं बनाता हूँ । आम मणिलाल और कुछ दूसरे लोगोंने भी इसे बनाना सीख लिया है। हम इसमें मद्यफेन (यीस्ट) और बेकिंग पाउडर नहीं डालते। गेहूँ हम खुद ही पीसते हैं । हमने फार्ममें पैदा की गई नारंगियोंका मुरब्बा भी बनाया १. " श्री भायात", पृष्ठ २८३ भी देखिए । २. गांधीजी डॉ० मेहताको गुजरातीमें लिखा करते थे। डॉ० मेहताने अपनी पुस्तकमें जो उपर्युक्त अंश उद्धृत किया है, वह अवश्य ही मूल गुजरातीका अंग्रेजी अनुवाद होगा । लेकिन मूल गुजराती पत्र उपलब्ध नहीं है। ३. यहाँ टॉल्स्टॉय फार्म में भवन निर्माण कार्य के उल्लेखसे जान पड़ता है कि यह पत्र ४ जूनके तुरन्त बाद लिखा गया होगा, जब गांधीजी फार्ममें रहनेके लिए गये थे । देखिए " जोहानिसबर्ग की चिट्ठी ” पृष्ठ २९१ ।