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२५४. पत्र : नारणदास गांधीको

श्रावण वदी ३
[अगस्त २३, १९१०]१

चि० नारणदास,

तुम्हारे पत्रको, उत्तर देनेके इरादेसे संभाल कर रख लिया था । जो समय तुम्हें मिलता है उसमें यदि वहाँके संघर्षका रहस्य समझनेमें और दूसरोंको समझानेमें व्यतीत करोगे, तो उचित हुआ मानूंगा। कोई वस्तु तभी मिलती है जब हम उसमें तन्मय हों, यह नियम है, इसमें सन्देह करनेकी कोई बात नहीं है। सत्याग्रहकी लड़ाई तन्मय होने योग्य है। इसीलिए उसके विषयमें यह सलाह दे रहा हूँ।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ५६३५) से । सौजन्य : नारणदास गांधी ।

२५५. गिरमिटियोंके संरक्षकको रिपोर्ट

गिरमिटियोंके तथाकथित 'प्रोटेक्टर' अर्थात् संरक्षककी वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित हो गई है। उसके मुख्य अंश हम इसी अंकम अन्यत्र दे रहे हैं। यह रिपोर्ट समझदार भारतीयोंके लिए लज्जास्पद है। कितने भारतीय आये, कितने मर गये और क्यों, यह सब जान लेना चाहिए; रिपोर्टके उद्धृत अंशोंसे यह जानकारी मिल जायेगी ।

श्री पोलकने गिरमिटियोंके कष्टोंकी जो हूबहू तसवीर खींची है, 'संरक्षक' ने उसका उत्तर दिया है। उत्तर पढ़ने लायक है। 'संरक्षक' का यह उत्तर कोई उत्तर ही नहीं है। यह तो 'रक्षक' के 'भक्षक' बन बैठनेका मामला है। समुद्रमें ही आग लग जाये तो उसे किस पानीसे बुझाया जाये ?

परन्तु हम इसे लेकर बहुत चिन्तित हैं कि गत वर्ष २,४८७ गिरमिटिये मद्राससे आये थे; उनमें छोटे-बड़े सब मिलाकर १७६ लड़के और १९५ लड़कियाँ थीं; उसी रिपोर्टमें २७,००० से ऊपर भारतीय नेटालमें जन्मे हुए हैं। इन सब लड़कों और लड़कियोंका क्या हुआ, सरकारने इसकी खबर तक नहीं ली। संरक्षकने उनके विषयमें एक शब्द भी नहीं लिखा। गिरमिटियोंके लिए उनके मालिक कुछ नहीं करते और इन बच्चोंको भी वे गिरमिटिया ही मानते हैं। इस व्यवहारकी तुलना ढोरोंके साथ होनेवाले व्यवहारसे की जा सकती है। [ किन्तु ] क्या हम सचमुच अपने ढोरोंको [भी]

१. देखिए " पत्र: नारणदास गांधीको ", पृष्ठ २१३-१४ । Gandhi Heritage Portal