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तार : गृह मन्त्रीको

मैंने तुमपर बड़ा बोझ डाल रखा है; किन्तु मैं देखता हूँ कि तुम उसे उठा सकते हो । यदि यह सब निश्चिन्त मनसे किया करो तो बोझ प्रतीत नहीं होगा ।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ४९४०) से । सौजन्य : राधाबेन चौधरी ।

३०८. तार : गृह-मन्त्रीको '

[ जोहानिसबर्ग,
नवम्बर ८, १९१० ]

ट्रान्सवालके अपंजीकृत निवासी आर० एम० सोढा सत्याग्रहीकी हैसियतसे जेल में । प्रवासी अधिकारीको समुचित सूचना देनेके बाद श्रीमती सोढाने अठारह महीने, ३ वर्ष और १२ वर्षके तीन बच्चोंके साथ नेटालसे टॉल्स्टॉय फार्म जाते हुए सीमा पार की । उन्हें फोक्सरस्टमें रोका गया। श्रीमती सोढापर निषिद्ध प्रवासी होनेका अभियोग। मुकदमेकी पेशी बढ़ा दी गई। पति बरबाद हो गये और उनका नेटालका घर चौपट हो गया । श्रीमती सोढा स्थायी रूपसे नहीं बल्कि अपने पतिकी निरन्तर कारावासकी अवधि तक ही रहेंगी । उलझी हुई स्थितिको संघ और नहीं उलझाना चाहता । अभीतक भारतीय स्त्रियाँ नहीं सताई गई थीं । संघको भरोसा है कि मुकदमा उठा लिया जायेगा ।"

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १९-११-१९१०



१. ब्रिटिश भारतीय संघ द्वारा भेजे गये इस तारका मसविदा सम्भवत: गांधीजीने तैयार किया था; देखिए " पत्र : अखवारोंको ", ३७९ ।


२. मन्त्री महोदय की ओरसे ९-११-१९१० को उत्तर दिया गया : “आपका कलका तार । चूँकि न तो सोढा और न उनके परिवारको ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेका हक है, इसलिए उन्हें खेद है कि वे निषिद्ध • प्रवासियोंक प्रवेशको मना करनेवाले कानूनकी व्यवस्थामें हस्तक्षेप नहीं कर सकते ।"