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३०६. तार : मुख्य प्रवासीअधिकारीको
[ फोक्सरस्ट [ ? ]
नवम्बर ७, १९१० ]
•••श्री गांधीने प्रवासी अधिकारीके नाम एक तार भेजा था जिसमें कहा गया था कि वे उस परिस्थितिको, जो पहलेसे ही काफी उलझी हुई है, और अधिक नहीं उलझाना चाहते। तारमें यह भी कहा गया था कि श्रीमती सोढा ट्रान्सवालमें स्थायी निवासका अधिकार नहीं चाहती; टॉल्स्टॉय फार्म में उनकी देखभाल की जायेगी और संघर्ष समाप्त होते ही वे ट्रान्सवालसे चली जायेंगी ।२
इंडियन ओपिनियन, १२-११-१९१०
३०७. पत्र : मगनलाल गांधीको
[ नवम्बर ७, १९१० के बाद ]
मनमें एक ही बात घूम रही है कि सबकी रसोई साथमें बना करे । इस काम में जबर्दस्ती नहीं करनी है। यदि तुम सन्तोक और अनीसे बराबर कहते-सुनते रहोगे तो बात बन जायेगी; यदि यह न हो पाया तो मेरे आनेपर हो जायेगा। तुम जिस तरह इस बार मेरे कमरेमें सोते थे, चाहता हूँ कि हमेशा ऐसा ही किया करो। अच्छा हो, सन्तोक और अनी एक ही कमरेमें सोया करें। साथ [ रसोई और ] भोजन करनेकी योजना आरम्भ होनेसे पहले साथ-साथ सोनेकी योजना शुरू हो जाये, तो भी ठीक होगा। मुझे इस बातका पता नहीं कि वहाँ साँपोंका कितना भय रहा करता है; परन्तु कुल मिलाकर [ फर्शपर ही ] बिस्तर बिछाकर सोनेका अभ्यास अच्छा है।
१. यह तार ७ नवम्बरको फोक्सरस्ट में श्रीमती सोढापर अभियोग लगाये जानेके तुरन्त बाद भेजा गया था; देखिए " पत्र : अखवारोंको ", पृष्ठ ३७९ ।
२. मुख्य प्रवासी अधिकारीने इसके उत्तर में श्रीमती सोढाको ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेकी अनुमति देने से इनकार करते हुए कहा था कि यदि वे नेटाल नहीं लौट जातीं तो उनके साथ एक निषिद्ध प्रवासीका सा बर्ताव किया जायेगा ।
३. इस पत्रके प्रथम अनुच्छेद में अनी देसाईंका जो उल्लेख है, उससे पता चलता है कि यह अनी देसाईके पति श्री पुरुषोत्तमदास देसाईको ७ नवम्बर, १९१० को ६ सप्ताहकी सजा सुनाई जानेके पश्चात् लिखा गया होगा ।