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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस अंक में प्रकाशित किया जा रहा है। वह पढ़ने योग्य है । उसमें उन्होंने सत्याग्रहके बारेमें जो कुछ लिखा है उसपर सबको मनन करना चाहिए। वे कहते हैं कि ट्रान्सवालका संघर्ष संसार भर में अपनी छाप छोड़ जायेगा । इस संघर्षसे सबको बहुत कुछ सीखना है। पत्र-लेखक सत्याग्रहियोंका उत्साह बढ़ाते हुए कहते हैं कि अगर शासकोंसे न्याय प्राप्त न हुआ तो ईश्वरसे अवश्य प्राप्त होगा। शासकोंको अपनी शक्तिका मोह होता है; उन्हें सत्याग्रह पसन्द आ ही नहीं सकता; किन्तु सत्याग्रहियोंको धैर्यपूर्वक संघर्ष चलाते रहना चाहिए। टॉल्स्टॉय रूसकी मिसाल देते हुए कहते हैं कि वहाँ भी सैनिक अपना फौजी पेशा त्यागते जा रहे हैं । उनको दृढ़ विश्वास है कि यद्यपि इस आन्दोलनका परिणाम फिलहाल दिखाई नहीं पड़ता, किन्तु आगे चलकर यह महान् रूप धारण कर लेगा और रूसकी बेड़ियाँ कटेंगी ।

हमारे आन्दोलनको टॉल्स्टॉय जैसे महान् पुरुषका आशीर्वाद है, यह हमारे लिए कुछ कम प्रोत्साहनकी बात नहीं। उनका चित्र हम आजके अंकमें दे रहे हैं ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २६-११-१९१०

३२८. छोटाभाईका मुकदमा

इस अपीलका फैसला छोटाभाईके खिलाफ जरूर हुआ है, फिर भी हम उसे उनकी तथा भारतीय समाजकी जीत मानते हैं । न्यायाधीश डी' विलियर्सका फैसला इकतरफा है। उनका कथन है कि १९०७ का कानून १९०८ के कानूनसे बहुत अंश तक रद हो गया है । और १९०७ के कानूनके अन्तर्गत भी छोटाभाईके पुत्रका संरक्षण होता है या नहीं, उन्हें इस बारेमें सन्देह है । इन्हीं महाशयने, जब वे अटर्नी जनरल थे, लॉर्ड क्रू से कहा था कि १९०८ का कानून एशियाई नाबालिगोंके पक्षमें है और इसके लिए १९०७ के कानूनका भी उपयोग किया जा सकता है। यदि १९०७ का कानून १९०८ के कानूनसे बहुत अंश तक रद होता था तो जनरल स्मट्सने अबतक उसे रद क्यों नहीं किया ? दूसरे दो न्यायाधीशोंका मत बहुत अच्छा है । जज ब्रिस्टोकी राय भी यही है कि १९०८ के कानूनसे १९०७ का कानून अधिकांशमें रद हो जाता है । उनका खयाल है कि छोटाभाईके पुत्रका बचाव १९०७ के कानूनसे हो सकता था । वे यह भी कहते हैं कि ये दोनों कानून दोषपूर्ण हैं और यह कि जिस कानूनसे नाबालिगोंकी रक्षा नहीं होती वह कानून अत्याचारपूर्ण ही कहा जायेगा। आगे चलकर वे यह भी कहते हैं कि उन्होंने जो फैसला दिया है उसके विषयमें उन्हें खुद भी बहुत सन्देह है ।

न्यायाधीश मेसनने तो कहा है कि अपीलका फैसला छोटाभाईके पक्षमें होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा है कि १९०७ के कानूनसे जिन अधिकारोंकी रक्षा होती है वे अधिकार १९०८ के कानूनसे रद हुए नहीं माने जा सकते । १९०८ का कानून