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३२७. स्वर्गीय महान् टॉल्स्टॉय

महान् टॉल्स्टॉयने लगभग तिरासी वर्षकी पकी अवस्थामें देहत्याग किया है ।" 'वे मर गये हैं' उसकी अपेक्षा यह कहना कि उन्होंने 'देहत्याग किया है' अधिक उचित जान पड़ता है । टॉल्स्टॉयकी आत्मा - रूह -- का मरण तो हो ही नहीं सकता । टॉल्स्टॉयका नाम तो अमर ही है । केवल उनका शरीर, जो मिट्टीसे पैदा हुआ था मिट्टी में जा मिला है ।

टॉल्स्टॉयका नाम सारा संसार जानता है; परन्तु सैनिककी तरह नहीं, यद्यपि वे एक समय कुशल सैनिकके रूपमें मशहूर थे। एक बड़े लेखककी भाँति भी नहीं, यद्यपि लेखकके रूपमें उनकी बड़ी ख्याति है । एक रईसकी तरह भी नहीं, यद्यपि उनके पास अपार सम्पत्ति थी । उन्हें तो संसार एक साधु-पुरुषके रूपमें जानता था । भारतमें हम ऐसे व्यक्तिको महर्षि अथवा फकीर कहेंगे। उन्होंने अपनी दौलत छोड़ी, ठाट-बाट छोड़ा और गरीब किसानकी जिन्दगी अपनाई । टॉल्स्टॉयका एक बड़ा गुण यह था कि उन्होंने जो कुछ सिखाया उसपर स्वयं भी अमल करनेका प्रयत्न किया है । इसलिए हजारों लोगोंने उनके वचनों -- उनके लेखोंपर -- निष्ठा रखी ।

हमारा विश्वास है कि ज्यों-ज्यों समय बीतेगा, त्यों-त्यों टॉल्स्टॉयके उपदेशोंका अधिकाधिक मान होगा। उनकी शिक्षा धर्मपर आधारित थी । वे स्वयं ईसाई थे और इसलिए हमेशा यही मानते थे कि ईसाई धर्म सर्वश्रेष्ठ है, परन्तु उन्होंने अन्य धर्मोका खण्डन नहीं किया। उन्होंने तो यह कहा है कि सभी धर्मोंमें सत्य तो है ही । साथ ही, यह भी कहा है कि स्वार्थी पादरियों, स्वार्थी ब्राह्मणों और स्वार्थी मुल्लाओंने ईसाई और इसी तरह दूसरे धर्मोको गलत रूप दे दिया है और मनुष्योंको भ्रमित किया है ।

टॉल्स्टॉयका विशेष रूपसे यह कहना था कि शरीर बलकी अपेक्षा आत्म-बल अधिक शक्तिशाली होता है, यही सब धर्मोका सार है । संसारसे दुष्टता मिटानेका मार्ग यही है कि बुरेके साथ हम बुराईके बदले भलाई करें। दुष्टता अधर्म है । अधर्मका इलाज अधर्म नहीं हो सकता; धर्म ही हो सकता है। धर्ममें तो दयाका ही स्थान है। धर्मी व्यक्ति अपने शत्रुका भी बुरा नहीं चाहता। इसलिए सदा धर्म-पालन करते रहना इष्ट हो तो नेकी ही करनी चाहिए ।

इस महान् पुरुषने अपने जीवनके अन्तिम दिनोंमें 'इंडियन ओपिनियन' के अंक स्वीकार करते हुए श्री गांधीके नाम एक पत्र लिखा था । उसमें यही विचार व्यक्त किये गये थे । पत्र रूसी भाषामें है । उसके अंग्रेजी अनुवादका' गुजराती रूपान्तर १. टॉल्स्टॉयका देहावसान नवम्बर २०, १९१० को हुआ था । २. देखिए परिशिष्ट ६ । ३. पालिन पादलशुक द्वारा मूल रूसीसे किया गया अंग्रेजी अनुवाद २६-११-१९१० के इंडियन ओपिनियनके पहले पृष्ठपर छपा था । Gandhi Heritage Porta