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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करनी पड़ेगी। फिर भी आपने प्रश्न किया है, इसलिए उसका उत्तर देना मुझे अपना कर्तव्य मालूम होता है।

पाठक :
 

क्या आपको सचमुच ऐसा प्रतीत होता है कि भारतमें स्वराज्यकी भावना पैदा हो गई है?

सम्पादक :
 

सो तो जबसे राष्ट्रीय कांग्रेस स्थापित हुई तभीसे दिखाई दे रहा है। 'राष्ट्रीय' शब्दसे ही वह अर्थ व्यक्त होता है।

पाठक:
 

आपका यह कहना तो ठीक नहीं लगता; भारतीय कांग्रेसको नौजवान तो आज कुछ गिनते ही नहीं हैं। यहाँ तक कि वे उसे अंग्रेजी राज्य बनाये रखनेका साधन मानते हैं।

सम्पादक:
 

नौजवानोंका ऐसा खयाल ठीक नहीं है। भारतके राष्ट्र-पितामह दादाभाईने यदि जमीन तैयार न की होती तो नौजवान आज जो बातें करते हैं सो भी न कर पाते। श्री हयूमने जो लेख लिखे, हमें जैसा फटकारा और जिस उत्साहसे हमें जगाया, उसे कैसे भलाया जा सकता है? सर विलियम वेडरबनने कांग्रेसका उद्देश्य पूरा करने में अपना तन-मन-धन अर्पित कर दिया। उन्होंने अंग्रेजी राज्यके बारेमें जो लेख लिखे हैं वे आज भी पढ़ने लायक है। प्रोफेसर गोखलेने भिखारियोंकी-सी स्थितिमें रहकर जनताको तैयार करनेके लिए अपने जीवनके बीस वर्ष दे दिये। आज भी वे महानुभाव गरीबीसे रहते हैं। स्वर्गीय न्यायमूर्ति बदरुद्दीनने भी कांग्रेसके द्वारा स्वराज्यका बीज बोया था। इस तरह बंगाल, मद्रास, पंजाब आदिमें कांग्रेस तथा भारतका हित चाहनेवाले भारतीय और गोरे दोनों ही हो चुके हैं -- यह बात याद रखनी चाहिए।

पाठक :
 

ठहरिए ठहरिए। आप तो कहींके कहीं पहुँच गये। मेरा प्रश्न कुछ है और आप उत्तर कुछ दे रहे हैं। मैं स्वराज्यकी बात करता हूँ और आप परराज्यकी बात करते हैं। मुझे किसी अंग्रेजका नाम नहीं चाहिए और आप तो उनके ही नाम गिनाने लगे। इस तरह तो हमारी गाड़ी पटरीपर आती नहीं दिखती। स्वराज्यकी ही बातें कीजिए तो मुझे रुचेंगी। बुद्धिमानीकी दूसरी बातोंसे सन्तोष होनेवाला नहीं है।

सम्पादक :
 

आप उतावले हो गये हैं। उतावलीसे मेरा काम नहीं चल सकता। अगर आप जरा धीरज रखें तो आपको, जो चाहते हैं, वही मिलेगा। 'उतावलीसे आम नहीं पकते' यह कहावत याद रखिए। आपने मुझे रोका; आपको भारतपर उपकार करनेवालोंको चर्चा नहीं सुहाती, इससे प्रकट होता है कि अभी आपके लिए

१ अंग्रेजी पाठमें-“दोषोंको प्रकट करना पड़ेगा।" २ अंग्रेजी पाठमें - उस भावनासे ही राष्ट्रीय कांग्रेस पैदा हुई।" ३. देखिए खण्ड २, पृष्ठ ४१९ और “भारतके पितामह", पृष्ठ ३३५। ४. ए० ओ० हयूम, कांग्रेसके संस्थापकों में से एक ।

५. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके बम्बई (१८८९) और इलाहबाद (१९१०) अधिवेशनोंके अध्यक्ष, देखिए खण्ड १, पृष्ठ ३९६ ।

६. सुप्रसिद्ध भारतीय नेता, शिक्षाविद् और समाजसुधारक, देखिये खण्ड २, पृष्ठ ४१७-१८ ।

७. बम्बईके उच्च न्यायालयके न्यायाधीश और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके मद्रास अधिवेशन (१८८७) के अध्यक्ष, देखिए खण्ड ४, पृष्ठ ४७२ की पाद-टिप्पणी २ ।


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