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३७८. पत्र : जेल-निदेशकको

जोहानिसबर्ग
मार्च ३, १९११



महोदय,

श्री डैनियल आरमुगमने, जिन्हें सत्याग्रहीके रूपमें इसी १ तारीखको डीपक्लूफ जेल से रिहा किया गया था, मेरे संघको सूचित किया है कि रिहा होने के कोई एक पखवारा पहलेकी बात है, जिस कोठरीमें वे अपने साथी कैदियोंके साथ रहते थे, उसमें रातके एक बजे अधजगी अवस्थामें देखा कि एक साँप उनकी गर्दनपर रेंग रहा है । जैसा कि स्वाभाविक था, वे भयभीत होकर उठ बैठे और झटका देकर साँपको नीचे गिरा दिया। सौभाग्यवश कोठरीमें एक बत्ती थी। उन्होंने अपने पड़ोसीको जगा दिया, क्योंकि सांप उसीकी तरफ जा रहा था। देखते-ही-देखते उस कोठरीमें रहनेवाले सभी लोग जग गये। ऐसा प्रतीत होता है कि किसी एक कैदीको अपनी सैंडिल लेकर कोठरीमें प्रवेश करनेकी अनुमति दे दी गई थी, और इन्हीं सैंडिलोंसे साँपको मारा गया। श्री आरमुगम और उनके साथ रिहा होनेवाले अन्य भारतीय कैदियोंने मेरे संघको सूचित किया है कि डीपक्लूफ जेलकी कोठरियाँ बेढंगी बनी हैं, और उनमें साँप आदिसे कोई बचाव नहीं है । कुछ अन्य सत्याग्रहियोंने भी बताया है कि उस कोठरी में रातके समय साँप निकलना कोई असाधारण घटना नहीं है । कुछ समय पहले वहाँ एक साँप निकलनेकी घटनाका उन्हें भी अनुभव था । इसलिए मैं नम्रतापूर्वक आपका ध्यान इस मामलेकी ओर आकृष्ट कर रहा हूँ, ताकि कोठरियाँ इस ढंगकी बनाई जायें जिससे ऊपर उल्लिखित खतरेकी पुनरावृत्ति न हो सके ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-३-१९११

१. अ० मु० काछलियाके हस्ताक्षरसे भेजे गये इस पत्रका मसविदा अनुमानतः गांधीजीने तैयार किया था। २. जेल- निदेशकने इस पत्रके उत्तरमें लिखा था कि वह मामलेकी जाँच कर रहा है ।