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रम्भाबाई सोढा

और उससे हम श्रीमती मेयोके लेखको ज्यादा अच्छी तरह समझ सके हैं। उन्होंने लेखमें समस्त दक्षिण आफ्रिकाके सम्बन्ध में चर्चा की है । हम उनके लेखका अनुवाद देना चाहते हैं, इसलिए उसके सम्बन्धमें अधिक नहीं लिखना चाहते। हम केवल श्रीमती मेयोका परिचय देंगे। श्रीमती मेयो लगभग ६० वर्षकी वृद्धा महिला हैं । वे लेखिका हैं और अखबारों में लिखती रहती हैं। स्व० टॉल्स्टॉयने अपनी रचनाओंके अनुवादकोंमें उनको भी चुना था । इसलिए हम समझ सकते हैं कि श्रीमती मेयोके लेखका इतना प्रभाव क्यों हुआ ।

श्रीमती मेयोके अलावा एक हैं कुमारी हिल्डा हाउजिन । इन बनने ईस्ट इंडिया असोसिएशनमें जो भाषण दिया उसकी रिपोर्ट पठनीय है। इसमें उन्होंने ट्रान्सवालके प्रश्नसे सम्बन्धित मामलोंका विवेचन किया है। उनके भाषणके विवेचकों में से बहुतोंने सत्याग्रह - संघर्षकी प्रशंसा की है और उसके प्रति सहानुभूति दिखाई है ।

जिस समय ये दोनों बहनें इस प्रकार लिख या बोल रही थीं, लगभग उसी समय कुमारी पोलककी नियुक्ति समितिकी मन्त्राणीके रूपमें हुई ।

इस प्रकार जब हमें बिना माँगे सहायता मिल रही है, हमारी लड़ाई प्रख्यात हो रही है, दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंका नाम संसारमें फैल रहा है और जब उसी प्रकार भारतकी कीर्ति भी बढ़ रही है, तब हमारे निराश होनेकी क्या बात है ? यह देखते हुए कि ये सारी बातें लड़ाई लम्बी चलनेका सुपरिणाम हैं, हमें और अधिक उत्साह के साथ और जोरसे जूझना उचित है ।

श्रीमती मेयोका लेख' और कुमारी हाउजिनके व्याख्यानकी रिपोर्ट हम अगले अंकों में देनेका विचार करते हैं।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ४-३-१९११

३८२. रम्भाबाई सोढा

रम्भाबाईके मामलेमें अभीतक बखेड़ा चल रहा है । ट्रान्सवालके उच्च न्यायालयने मजिस्ट्रेटके निर्णयको बहाल रखा, इसलिए अब आगे अपील की गई है।' स्त्रियोंका यह पहला मामला है, इसलिए रम्भाबाई जेल चली जायें, इससे पहले प्रत्येक कार्रवाई करना लौकिक बुद्धिमत्ता मानी जायेगी । ऐसा करनेसे पारलौकिक बुद्धिमत्तापर भी आँच नहीं आती । इसलिए यह कहा जा सकता है कि अपील करना ठीक ही

१. इस लेखके गुजराती अनुवादके लिए इंडियन ओपिनियनके २२ और २९ अप्रैल, तथा ६, १३, २० और २७ मई, १९११ के अंक देखिए । २. देखिए इंडियन ओपिनियनके अप्रैल २९, मई ६, १३, २७ तथा जून ३ और १०, १९११ के अंक । ३. मजिस्ट्रेटने जनवरी १०, १९११ को रम्भाबाईंको १० पौंड जुर्माना तथा एक माह कैदकी सजा दी थी । उच्च न्यायालयने इस निर्णयको बदलकर १० पौंडका जुर्माना, और जुर्माना अदा न करनेपर एक माह कैदकी सजा कर दिया ।