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३८०. पत्र : ऑलिव डोकको

जोहानिसबर्ग
मार्च ३, १९११

प्रिय ऑलिव,

आशा है, तुमने अपनी छुट्टियाँ आनन्दसे बिताईं। तुम्हारे पिताजीने' मुझे बताया कि तुम लौट आई हो, और मैंने यह बात रामदासको भी बता दी है। मैं अब दोनों लड़कोंको' बृहस्पतिवारको भेजने की कोशिश करूँगा । लॉलीसे यहाँतक की यात्रामें खर्च काफी पड़ेगा, और फार्मपर जो दूसरे लड़के हैं उनकी भी सुगम संगीत सीखनेकी इच्छा स्वाभाविक ही है। विधेयक प्रकाशित हो गया है, इसलिए मेरा विचार एक-दो सप्ताह प्रतीक्षा करनेका है। तथापि, तुम्हारे स्नेहपूर्ण निमन्त्रणके लिए धन्यवाद ।

माताजीको मेरा स्मरण दिला देना ।

हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी

कुमारी ऑलिव डोक

११, सदरलैंड एवेन्यू
हॉस्पिटल हिल

जोहानिसबर्ग
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रति (सी० डब्ल्यू० ४९२९) की फोटो - नकलसे ।
सौजन्य : सी० एम० डोक ।

३८१. तीन महिलाओं द्वारा सहायता

हमें ट्रान्सवालकी लड़ाईमें केवल प्रमुख पुरुषोंकी ही नहीं, बल्कि प्रमुख स्त्रियोंकी भी उतनी ही सहायता मिली है । भारतमें श्री पोलकको श्रीमती रमाबाई रानडे और श्रीमती पेटिटके नेतृत्वमें जो सहायता मिली, उससे 'इंडियन ओपिनियन' के पाठक परिचित हैं।

अभी इंग्लैंडमें श्रीमती मेयोने जो प्रभावपूर्ण लेख लिखा है, उसका रायटर द्वारा प्रेषित विवरण हम देख चुके हैं। हमें उस लेखकी पेशगी प्रतिलिपि मिली है, १. रेवरेंड जे० जे० डोक । २. रामदास गांधी और देवदास गांधीको संगीत-शिक्षाके लिए भेजनेका प्रसंग था । ३. श्रीमती जॉन आर० मेयो; श्रीमती मेयो कभी-कभी 'एडवर्ड गेरेट' के छद्म नामसे लिखा करती थीं । उक्त लेख मिलगेट मन्यली नामक पत्रिकामें प्रकाशित हुआ था ।