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पत्र : ई० एफ० सी० लेनको

प्रवेश करनेवाले शिक्षित एशियाई ट्रान्सवाल पंजीयन अधिनियम और फ्री स्टेट एशियाई अध्यादेशसे मुक्त रहेंगे तबतक वे उक्त विशेष कानूनोंके अन्तर्गत निषिद्ध रहेंगे । वकीलकी यह भी सलाह है कि कानूनी अधिवासियोंके ट्रान्सवालसे बाहर रहनेवाले नाबालिग बच्चे और पत्नियाँ सामान्य कानून द्वारा संरक्षित नहीं हैं । यदि जनरल स्मट्स कृपापूर्वक आश्वासन दें कि विधेयकमें परिवर्तन करके अनिश्चितता दूर कर दी जायेगी तो मैं सहर्ष समाजको सत्याग्रह बन्द करने और विधेयकको कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार करनेकी सलाह दूंगा ।

गांधी

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५२३४) की फोटो - नकलसे; और १८-३-१९११ के 'इंडियन ओपिनियन' से भी ।

३८५. पत्र : ई० एफ० सी० लेनको

जोहानिसबर्ग
मार्च ४, १९११

प्रिय श्री लेन,

मुझे अभी-अभी जो उत्साहवर्धक तार' मिला है उसके लिए मेरी ओरसे जनरल स्मट्स तक मेरा धन्यवाद पहुँचाने की कृपा करें। मैंने गत २ तारीखके अपने पत्र में कहा था कि इस संघर्षको समाप्त करने में सहायक होनेकी मेरी हार्दिक इच्छा है । मैं उसे दोहराने की आवश्यकता नहीं समझता। इसलिए मैं इस आश्वासनका स्वागत करता हूँ कि यद्यपि ट्रान्सवालका १९०८ का पंजीयन कानून ३६ रद नहीं किया जायेगा फिर भी जो एशियाई शैक्षणिक परीक्षा पास कर लेंगे उनपर वह लागू नहीं किया जायेगा ।

जाहिर है कि इस महत्त्वपूर्ण मामलेमें मैंने विधेयककी केवल अपनी ही व्याख्यापर भरोसा नहीं रखा है। मुझे अब अपने वकीलकी राय मिल गई है। उसके अनुसार मेरी व्याख्या सर्वथा गलत है और विधेयकका खण्ड १ शिक्षित एशियाइयोंकी कानून ३६ से रक्षा नहीं करता। मेरे सामने जो सम्मति है, उसमें स्पष्ट कहा गया है कि

१. इसमें कहा गया था : “ नये प्रवासी विधेयकके अन्तर्गत प्रवेश पानेवाले एशियाई प्रवासी पंजीयन कानूनसे बरी रहेंगे, और प्रान्तीय सीमाओंसे मुक्त होंगे । ऐसे प्रवासियों और प्रान्तोंके उन वैध निवासियों के बीच अन्तर करनेके लिए, जो पंजीयन करानेके लिए बाध्य हैं, यह आवश्यक होगा कि उनकी [ प्रवासियोंकी] एक सूची रखी जाये। लेकिन चूँकि ये प्रवासी शिक्षित वर्गके होंगे, इसलिए प्रवेश करते समय उनके हस्ताक्षर लेना ही पर्याप्त होगा ...।" यह तार इंडियन ओपिनियनके १८-३-१९११ वाले अंकमें उद्धृत किया गया था । २. श्री आर० ग्रेगरोवस्की; देखिए “पत्र : एच० एस० एल० पोलकको", पृष्ठ ४६०-६१ और पृष्ठ ४७४ ।