पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/५१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



४०५. नेटालका प्रार्थनापत्र : संघ-विधानसभाको

डर्बन
मार्च ९, १९११

सेवामें

संसद में एकत्रित
दक्षिण आफ्रिका संघकी सम्मान्य विधानसभाके
माननीय अध्यक्ष तथा सदस्यगण

केप टाउन

नेटाल भारतीय कांग्रेसके अध्यक्ष दाउद मुहम्मद और अवैतनिक संयुक्त मन्त्री दादा उस्मान तथा मुहम्मद कासिम आंगलियाका पदेन पेश किया गया प्रार्थनापत्र नम्र निवेदन है कि

(१) नटाल भारतीय कांग्रेसके तत्वावधान में ९ मार्च, १९११ को ब्रिटिश भारतीयोंकी जो सार्वजनिक सभा हुई थी, उसमें आपके प्रार्थियोंको इस बातका अधिकार दिया गया था कि वे सम्मान्य सदनकी सेवामें विधेयकके सम्बन्धमें प्रार्थनापत्र भेजें । सदनके विचारार्थ प्रस्तुत इस विधेयकका मन्शा संघके विभिन्न प्रान्तोंमें प्रवासपर प्रतिबन्ध लगानेवाले वर्तमान कानूनोंको एकत्र करना और संशोधन करना, संघीय प्रवासी विभागकी स्थापना करना और संघमें अथवा उसके किसी भी प्रान्तमें होनेवाले आव्रजनका नियमन करना है ।

(२) आपके प्रार्थी इसे एक दुर्भाग्यकी बात समझते हैं कि दक्षिण आफ्रिकामें बसने- वाले सम्राट्के भारतीय प्रजाजन संघकी स्थापनासे होनेवाले लाभोंसे वंचित रहेंगे, क्योंकि उनके आने-जानेकी स्वतन्त्रतापर पहलेकी भाँति अब भी प्रान्तीय प्रतिबन्ध लागू रहेंगे, परन्तु आपके प्रार्थियोंको उपर्युक्त सभा द्वारा यह कहनेका अधिकार दिया गया है कि संघके बहुत-से भागोंमें एशियाइयोंके विरुद्ध जो पूर्वग्रहकी भावना है, उसको देखते हुए वे लोग, जिनका प्रतिनिधित्व आपके प्रार्थी करते हैं, फिलहाल इस प्रतिबन्धपर कोई आपत्ति नहीं उठाना चाहते ।

(३) फिर भी, प्राथियोंसे कहा गया है कि वे इस विधेयकके विरुद्ध निम्नलिखित आपत्तियोंकी ओर सम्मान्य सदनका ध्यान आकर्षित करें :

(क) इस प्रान्तमें जो प्रवासी कानून आज प्रचलित हैं, उनके अन्तर्गत शैक्षणिक कसौटी-सम्बन्धी धाराके अनुसार प्रवासकी इच्छा करनेवाला कोई भी व्यक्ति उस यूरोपीय भाषामें परीक्षा दे सकता है, जिसे वह जानता है । किन्तु वर्तमान विधेयकमें परीक्षाकी भाषा चुननेका हक प्रवासी अधिकारीको सौंपा गया है ।

१. इसका मसविदा गांधीजीने तैयार किया था । देखिए “पत्र : एच० एस० एल० पोल्कको ", पृष्ठ ४६८-६९ । इससे स्पष्ट हो जाता है कि यह प्रार्थनापत्र ७-३-१९११ को तैयार हो चुका था ।