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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मेल नहीं बैठता और वह दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीयोंके लिए अन्याय- पूर्ण है । तथापि प्रार्थी संघ जिस समाजका प्रतिनिधित्व करता है उसके विरुद्ध दक्षिण आफ्रिकामें जो पूर्वग्रह विद्यमान है, उसको ध्यानमें रखते हुए हमने निश्चय किया है कि फिलहाल उपर्युक्त प्रतिबन्ध स्वीकार कर लिया जाये; परन्तु प्रार्थी संघ सम्माननीय सदनके समक्ष सविनय निवेदन करता है कि उपर्युक्त विधेयक ट्रान्सवालमें रहनेवाले ब्रिटिश भारतीयोंके हितोंको बहुत अधिक प्रभावित करने- वाली कतिपय आवश्यक बातोंमें भ्रामक है । ये बातें नीचे लिखे अनुसार हैं :

(क) यह विधेयक, अपनी वर्तमान शब्दावलीके अनुसार उक्त विधेयकके खण्ड ४ में निर्धारित शैक्षणिक परीक्षा पास कर सकनेवाले शिक्षित भारतीयोंको भी ट्रान्सवालमें निवासकी अनुमति नहीं देता। इसका कारण १९०८ के एशियाई पंजीयन कानून ३६ का बरकरार रहना है। संघको कानूनी तौरपर सलाह दी गई है कि विधेयकमें किसी विशेष उल्लेखके अभाव में ऐसे एशियाई उक्त एशियाई पंजीयन कानूनकी धाराओंके अधीन होंगे और इसलिए ट्रान्सवालमें प्रवेश पाने में समर्थ न होंगे, या यदि उन्हें इसके लिए अनुमति मिल भी गई तो उन्हें उक्त कानूनके मुताबिक पंजीयन करानेके लिए बाध्य होना पड़ेगा । प्रार्थी संघ सादर निवेदन करता है कि शैक्षणिक कसौटी पर खरे उतरनेवाले ब्रिटिश भारतीयोंकी शिनाख्त के लिए यह परीक्षा ही काफी होगी; और इसलिए विधेयकमें ऐसा संशोधन होना चाहिए कि परीक्षा पास करनेवाले शिक्षित एशियाइयोंके प्रवेशाधिकारके बारेमें कुछ भी अनिश्चितता बाकी न रह जाये; और वे, पंजीयन कानूनों या विभिन्न प्रान्तोंके वैसे ही अन्य कानूनोंसे बरी रहकर ट्रान्सवालमें और संघ- राज्यके अन्य प्रान्तों में प्रवेश कर सकें और बने रह सकें ।
(ख) प्रार्थी संघ विनम्रतापूर्वक सम्माननीय सदनका ध्यान इस तथ्य की ओर आकृष्ट करता है कि पंजीकृत एशियाइयोंकी पत्नियों और नाबालिग बच्चोंको जो संरक्षण ट्रान्सवालके १९०७ के कानून १५ और उसके साथ पंजीयन कानूनकी मौजूदगीके कारण अबतक मिलता रहा है, उक्त विधेयकमें उसकी कोई व्यवस्था नहीं जान पड़ती। उक्त विधेयकके द्वारा ट्रान्सवालके १९०७ का कानून १५ रद कर दिया जानेवाला है।

३ अन्तमें प्रार्थी संघ सम्माननीय सदनसे इस निवेदनपर विचार करने और विधेयक में वांछित संशोधन करने या ऐसी कोई अन्य राहत, जिसे सम्माननीय सदन ठीक समझे, देनेकी प्रार्थना करता है । न्याय और दयाके इस कार्यके लिए आपके प्रार्थी कर्तव्य मानकर आपके लिए दुआ करेंगे ।

अध्यक्ष,
ब्रिटिश भारतीय संघ

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५२७३) की फोटो नकल और १८-३-१९११ के 'इंडियन ओपिनियन' से ।