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ट्रान्सवालका प्रार्थनापत्र : संघ - विधानसभाको

यह है कि नमक एक तेज पदार्थ है। किसी भी चीजमें जरा-सा छोड़ दो तो उसका गुण और स्वाद बदल देता है। उसके असर से खून बहुत पतला हो जाता होगा । मेरा खयाल है, बीमार आदमीपर तो इसका असर तत्काल ही होता होगा, और सो भी ज्यादातर खराब ही । पहले जब मैंने श्रीमती वैलेस वगैरहके लेख पढ़े थे तब उनका इतना असर नहीं हुआ था; किन्तु इस बार मनमें यही विचार चलता रहता था कि डॉक्टरको न बुलाना ही ठीक होगा। तभी यह बात सूझी कि देखना चाहिए, नमक छोड़ देनेसे क्या होता है । बा, बहुत हुआ तो, यह महीना निकाल देगी; इससे ज्यादा नहीं चला पायेगी । किन्तु मेरा विचार आगे भी जबतक बने प्रयोगको चलाते रहनेका है ।

मोहनदासके आशीर्वाद

[ पुनश्च : ]
पत्र पुरुषोत्तमदासको भी पढ़नेको दे देना ।
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें लिखित मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू ० ५०७९ ) से ।
सौजन्य : राधाबेन चौधरी ।

४११. ट्रान्सवालका प्रार्थनापत्र : संघ-विधानसभाको

जोहानिसबर्ग
मार्च १०, १९११

सेवामें

माननीय अध्यक्ष महोदय और सदस्यगण,
विधानसभा, दक्षिण आफ्रिका संघराज्य
केप टाउन

ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्षकी हैसियतसे अहमद मुहम्मद

काछलियाका प्रार्थनापत्र

नम्र निवेदन है कि

१. संघके सदस्योंने सरकारी गजट' के २५ फरवरीके असाधारण अंकमें प्रकाशित उस विधेयकको पढ़ा है, जिसका उद्देश्य है संघके विभिन्न प्रान्तोंमें प्रवासको नियन्त्रित करनेके लिए लागू विभिन्न कानूनोंका एकीकरण और संशोधन करना, एक संघीय प्रवासी विभागकी स्थापनाकी व्यवस्था करना, और संघके किसी भी प्रान्तके प्रवासका नियमन करना । २. प्रार्थी संघकी विनम्र सम्मतिमें इस समय दक्षिण आफ्रिकाके विभिन्न प्रान्तोंमें निवास करनेवाले ब्रिटिश भारतीयोंके अधिकारोंको विधेयकमें प्रान्तीय सीमाओं तक सीमित करनेकी जो व्यवस्था की गई है उसका प्रान्तोंके संघीकरणके साथ १. इसकी प्रति रिचको भी भेज दी गई थी; देखिए “पत्र : एल० डब्ल्यू रिचको ” पृष्ठ ४८५-८६ । १०-३१