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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मेरे संघके लिए यह कह देना उचित होगा कि श्री रिच ऐसे व्यक्ति हैं जिनका इस विवादसे एक लम्बे अर्सेसे सम्बन्ध रहा है; उन्होंने विषयका पूरी तरह अध्ययन किया है और वे कई वर्षों तक जोहानिसबर्ग में रह चुके हैं; इसलिए वे सरकार के सामने संघका प्रतिनिधित्व करनेके लिए विशेष रूपसे उपयुक्त हैं। उन्हें समाजका पूर्ण विश्वास प्राप्त है । संघने महसूस किया कि व्यक्तिगत मुलाकातोंके द्वारा संघर्षको समाप्त करनेकी दिशामें बहुत कुछ किया जा सकता है। इसीलिए श्री रिचको, यदि आवश्यक हो तो, जनरल स्मट्ससे मिलनेके लिए नियुक्त किया गया। मेरा संघ आशा करता है कि विधेयक इस प्रकार संशोधित कर दिया जायेगा कि अन्तमें यही जान पड़े कि श्री रिचको भेजना अनावश्यक था ।

मेरे संघने जनरल स्मट्स और श्री गांधीके बीच हुए पत्र-व्यवहारको पढ़ा है। संघकी इच्छानुसार मैं जनरल स्मट्ससे किये गये श्री गांधीके इस निवेदनकी' पुष्टि करता हूँ कि संघर्ष उस दिन समाप्त हो जायेगा जिस दिन [ प्रवर ] समिति विधेयक में इस प्रकार संशोधन कर देगी कि शैक्षणिक कसौटीके अन्तर्गत प्रवेश पानेवाले शिक्षित भारतीय विभिन्न प्रान्तोंके पंजीयन कानूनों, खासकर ट्रान्सवालके १९०८ के कानून ३६, से बरी हो जायेंगे, और यदि ऐसे एशियाइयोंकी पत्नियों और छोटे बच्चोंके संरक्षणकी स्पष्ट व्यवस्था की जायेगी जो पंजीकृत हैं, या पंजीयन करानेके अधिकारी हैं या जो शैक्षणिक कसौटीके आधारपर इस प्रान्तमें रहनेके अधिकारी हैं। इन एशियाइयोंकी पत्नियाँ और छोटे बच्चे ट्रान्सवालमें हों अथवा ट्रान्सवालसे बाहर, कोई अन्तर नहीं पड़ेगा ।

मेरे संघको भरोसा है कि यदि यह संघर्ष, जो इतना लम्बा खिंच गया है, अच्छे ढंगसे समाप्त हो जाता है तो वे लोग, जो इस समय सत्याग्रहीके रूपमें जेल भोग रहे हैं, छोड़ दिये जायेंगे, और जिन लोगोंने अपने आत्मिक विश्वासोंके कारण कष्ट सहे हैं उन्हें दण्डित नहीं किया जायेगा, बल्कि उनके उन अधिकारोंका सम्मान किया जायेगा, जो उन्हें १९०८ के कानून ३६ के अन्तर्गत प्राप्त होते ।

आपका आज्ञाकारी सेवक ,
अध्यक्ष,
ब्रिटिश भारतीय संघ

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५२६७) की फोटो नकलसे । १. देखिए “पत्र : ई० एफ० सी० लेनको", पृष्ठ ४५७-५८ ।