पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/५२९

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४१४. पत्र : एच० एस० एल० पोलकको

[ जोहानिसबर्ग ]
मार्च १०, १९११

प्रिय पोलक,

मैं नहीं समझता कि पुलिस अधिकारीको लेकर चिन्ता करने की आवश्यकता है । यदि विनियमोंमें काफिर पुलिस रखनेकी व्यवस्था है तो हम इन विनियमों के विरुद्ध लड़ सकते हैं। मैं सोचता हूँ कि हमें विधेयककी तफसीलोंकी आलोचना करते समय भी बहुत सावधान रहना चाहिए, और जो बातें विनियमों द्वारा ठीक की जा सकती हों, उन्हें लेकर परेशान न होना चाहिए। हाँ, मेरी रायमें दूसरे खण्डका आपने ठीक अर्थ लगाया है । परन्तु ग्रेगरोवस्कीका खयाल है कि सातवें खण्डसे वह अर्थ कट जाता है; और उनकी बात सही हो सकती है। आपका यह कहना बिलकुल ठीक है कि पंजीयन के कारण ट्रान्सवालके अधिकार नहीं छीने जा सकते, परन्तु नेटालके अधिवासका अधिकार, जो अत्यधिक पारिभाषिक शब्द है, स्थानान्तरणके फलस्वरूप रद हो जा सकता है । परन्तु मैं आपसे सर्वथा सहमत हूँ कि यह प्रश्न इस समय नहीं उठाया जाना चाहिए। 'नेटाल विटनेस' के नाम आपका पत्र' मुझे शानदार लगा । मैं समझता हूँ कि उन बहुत-सी बातोंपर, जिनका आपने अपने पत्र में उल्लेख किया है, भारत सरकारने कभी विचार नहीं किया। परन्तु यह पत्र अपने-आपमें इतना उत्तम और युक्तिपूर्ण है कि इसे 'इंडियन ओपिनियन' के स्तम्भोंमें उद्धृत किया जाना चाहिए । कदाचित् आपके पास इसकी प्रति न हो, इसलिए मैं इसे आपके पास वापस भेज रहा हूँ ।

हृदयसे आपका,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५२७१) की फोटो - नकलसे ।

४१५. पत्र : एल० डब्ल्यू० रिचको

[ जोहानिसबर्ग ]
मार्च १०, १९११

प्रिय रिच,

मैं संसदके समक्ष प्रस्तुत किये जानेवाले प्रार्थनापत्र' और जनरल स्मट्सके नाम लिखे गये पत्रकी प्रतिलिपि इस पत्रके साथ भेज रहा हूँ। यदि आप समझें कि यह

१. यह १८-३-१९११ के इंडियन ओपिनियन में उद्धृत किया गया था । २. देखिए “ ट्रान्सवालका प्रार्थनापत्र : संघ-विधानसभाको”, पृष्ठ ४८१-८२ । ३. देखिए "पत्र: गृहमन्त्रीके निजी सचिवको", पृष्ठ ४८३-८४ ।