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४१७. रिचका आगमन

श्री रिच विलायतसे लौट आये हैं। आते ही वे काममें जुट गये हैं । उनका इस समय आना बिल्कुल प्रसंगानुकूल हुआ है । उन जैसे व्यक्तिकी इस समय जितनी आवश्यकता यहाँ है, उतनी विलायतमें नहीं है । विलायतमें उनका काम कुमारी पोलक देख सकती हैं ।

समाजका श्री रिचके प्रति यह कर्तव्य है कि वह उन्हें प्रोत्साहन दे । वे थोड़े ही दिनोंमें अपना धन्धा शुरू करनेवाले हैं। यदि समाजने उन्हें उसमें सहायता पहुँचाई तो वे अपनी जीविकाके योग्य कमा ही लेंगे। सभीको स्मरण रखना चाहिए कि श्री रिच गरीब आदमी हैं ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-३-१९११

४१८. तार : संसद सदस्योंको

[ जोहानिसबर्ग ]
मार्च ११, १९११

संघको प्राप्त कानूनी शैक्षणिक कसौटीपर मेरा संघ आपका ध्यान प्रवासी विधेयककी ओर आकृष्ट करना चाहता है जिसका द्वितीय वाचन सोमवारको होनेवाला है । सलाह के अनुसार विधेयक शिक्षित एशियाइयोंको, जो खरे उतर सकें, एशियाई पंजीयन कानूनोंके प्रभावसे बरी नहीं करता और न यह पंजीकृत एशियाइयों अथवा शैक्षणिक कसौटीके अन्तर्गत आनेवाले एशियाइयोंके नाबालिग बच्चों और पत्नियोंकी रक्षा करता है । आशा है विधेयकका संशोधन इस प्रकार किया जायेगा कि आपत्तियोंका निराकरण हो जायेगा । इससे उस कष्टदायक संघर्षका सुखद अन्त हो जायेगा जिसके फलस्वरूप तीन हजारसे ऊपर गिरफ्तारियाँ हुईं और बहुत-से एशियाइयोंके घर बरबाद हो गये। नेटाल और केपकी स्थितिपर विधेयकके प्रभावके बारेमें सघको कुछ नहीं कहना है ।

काछलिया
अध्यक्ष,
ब्रिटिश भारतीय संघ

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५२७६) की फोटो नकल और १८-३-१९११ के 'इंडियन ओपिनियन 'से भी ।

१. यह तार संसद सदस्योंको केप टाउन भेजा गया था और इसकी एक प्रति रिचको भी भेजी गई थी। देखिए अगला शीर्षक । २. मार्च १३, १९११