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४२१. तार : नटेसन, गोखले और द० आ० ब्रि भा० समितिको

[ जोहानिसबर्ग ]
मार्च ११, १९११

१. नटेसन, मद्रास

२. गोखले, कलकत्ता

३. शिष्टमण्डल', लन्दन

सिद्धान्ततः नया विधेयक सन्तोषजनक क्योंकि यह कानूनी समानता स्वीकार करता है । यदि इसका संशोधन इस तरह हो जाये कि शिक्षित भारतीय पंजीयन कानूनकी अधीनतासे मुक्त हो जायें और वैध निवासियों के नाबालिग बच्चों और पत्नियोंको संरक्षण मिल जाये, फिर चाहे वे बच्चे और पत्नियाँ इस समय ट्रान्सवालमें हों या उसके बाहर, तो इससे सत्याग्रहका अन्त हो जायेगा । नेटाल और केपपर इसका प्रभाव बुरा पड़ेगा; क्योंकि यह वैध निवासियोंके अधिकारोंको कम करता है । यह उन्हें अपनी पत्नियाँ और नाबालिग बच्चोंको लानेके अधिकारोंसे वंचित करता है । ट्रान्सवालमें शैक्षणिक कसौटीके सख्त होनेकी बातपर आपत्ति नहीं है । किन्तु केप और नेटालके भारतीयोंको सख्त कसौटीपर यथार्थ आपत्ति है । इसका परिणाम एशियाइयोंको एक तरहसे बिलकुल रोक देना है। केप और नेटालको इसपर बहुत शिकायत है। ऐसा निषेध व्यापारियोंको क्लर्को, सहायकोंको लाने से रोकता है जो अबतक शैक्षणिक कसौटीके अन्तर्गत आते रहे हैं। इन सब बातोंके बारेमें सरकार और संघ संसदको प्रतिवेदन भेजे गये हैं। शायद आवश्यक संशोधन कर दिये जायेंगे । जनरल स्मट्सका कहना है साम्राज्य सरकारने विधेयकको वर्तमान रूपमें पहले ही स्वीकार कर लिया है। यदि विधेयकका केवल सिद्धान्त स्वीकार किया हो तो कोई हानि नहीं । साम्राज्य और भारतीय सरकारें विधेयकको भारतीयोंकी आपत्तियोंपर विचार किये बिना तफसीलके साथ स्वीकार नहीं करेंगी यदि करती हैं तो वह अन्याय होगा । द्वितीय वाचन सोमवारको । है कि इस समय अधिकारियोंके पास प्रतिवेदन भेजे जायें और उनसे

१. ऐसा लगता है कि सन् १९०६ में जब एक शिष्टमण्डलके रूपमें लन्दनमें १० जुलाई से १३ नवम्बर तक ठहरे थे उस समय यहाँ उनके तारका पता यही था । बादमें अनुमान है कि लन्दन स्थित दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिने इस पतेको बराबर अपनाये रखा । " पत्र : मॉड पोल्कको", पृष्ठ ४९०-९२ । देखिए