पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/५३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४९५
पत्र: 'रैंड डेली मेल' को

नहीं किये गये तो हमें इस मामलेमें आगे जाना होगा और इस घटनाका प्रयोग जनरल स्मट्सके विरुद्ध करना पड़ेगा ।

हृदयसे आपका,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५२८५ ) की फोटो - नकलसे ।

४२७. पत्र : 'रैंड डेली मेल' को

जोहानिसबर्ग
मार्च १५, १९११

महोदय

आपके आजके अग्रलेखकी एक ही बातपर कुछ शब्द कहने की अनुमति चाहता हूँ । यदि मुझे अपने देशवासियोंकी आकांक्षाओंको व्यक्त करनेका अधिकार है तो मैं कह सकता हूँ कि विभिन्न प्रान्तों में बसे हुए ब्रिटिश भारतीयोंको प्रभावित करनेवाली वर्तमान स्थितिको चुपचाप स्वीकार कर लेनेका प्रश्न न तो इस समय है और न पहले ही कभी था । जहाँतक ट्रान्सवालका सम्बन्ध है, वर्तमान विधेयक इतना ही कर सकता है कि इससे सत्याग्रह स्थगित हो जाये । और वह भी तब, जब विधेयकमें इस बातको स्पष्ट करनेके लिए आवश्यक संशोधन कर दिये जायें कि अधिवासी एशि- याइयोंके नाबालिग बच्चे और पत्नियाँ, चाहे वे इस समय ट्रान्सवालमें हों या उसके बाहर, इस समय जिन अधिकारोंका उपभोग कर रही हैं वे उनसे छीने नहीं जायेंगे और जो थोड़े-से उच्च शिक्षा प्राप्त एशियाई शैक्षणिक कसौटीके अन्तर्गत प्रवेश करेंगे, प्रान्तीय पंजीयन कानूनोंसे बरी रहते हुए वे संघ - राज्यके किसी भी भाग में निवास कर सकेंगे । सत्याग्रहके साथ-साथ भारतीयोंने और साम्राज्य तथा भारतीय सरकारोंने भी सदा उन कानूनोंको रद करनेपर जोर दिया है जो उनके लिए भू-सम्पत्ति रखना वर्जित करते हैं और जिनसे उनकी आवागमन आदिकी स्वतन्त्रतामें खलल पहुँचता है। मुझे पूरा यकीन है कि केप और नेटालके भारतीय अपने वर्तमान अधि- कारोंको सीमित करनेवाले कानूनोंका भरसक मुकाबिला करेंगे और किसी भी हालत में उन्हें स्वीकार नहीं करेंगे। इस युग में, जिसे हम मोहवश प्रगतिका युग मानते हैं, कोई भी बात पत्थर की लकीर नहीं कही जा सकती । संघके यूरोपीय निवासी मेरे देश- वासियोंके प्रति अबतक जो व्यवहार करते रहे हैं, मेरे देशवासियोंको चाहिए कि वे उससे अधिक अच्छा व्यवहार पानेकी पूरी कोशिश करें। यदि वे ऐसा नहीं करते तो आदमियतसे गिर जायेंगे। वर्तमान विधेयकमें शैक्षणिक कसौटी धोखा-धड़ी नहीं है;

१. यह २५-३-१९११ के इंडियन ओपिनियन में उक्त अग्रलेखके एक अंशके साथ उद्धृत किया गया था। २. साधन-सूत्र में तारीख मार्च १६ ; लेकिन देखिए " पत्र : एल० डब्ल्यू० रिचको ", पृष्ठ ४९६