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पत्र : एल० डब्ल्यू० रिचको

जैसा कि अबतक था, आवश्यक । इसलिए अनुरोध है कि यदि फ्री स्टेटके सदस्य फी स्टेटकी सीमाके भीतर एक भी शिक्षित एशियाईको सहन नहीं कर सकते और यदि पत्नियों और नाबालिगोंकी रक्षा नहीं हो सकती तो अच्छा होगा कि यह विधेयक पास ही न किया जाये और ट्रान्सवालकी स्थितिका स्थानीय विधानमें संशोधन करके निपटारा कर दिया जाये ।

गांधी

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५३०९ ) की फोटो - नकल और २५-३-१९११ के 'इंडियन ओपिनियन' से ।

४३८. तार : एल० डब्ल्यू० रिचको

जोहानिसबर्ग
मार्च १७, १९११

स्मट्सके नाम मेरे तारकी प्रति आपको मिलेगी। कार्टराइटसे अभी-अभी मिला हूँ। वे मुद्देको समझ गये हैं । सहमत हैं । जहाँ सिद्धान्त ही खतरेमें हो वहाँ बालकी खाल निकालनेका प्रश्न ही नहीं है ।"

गांधी

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५३०८) की फोटो - नकलसे ।

४३९. पत्र : एल० डब्ल्यू० रिचको

मार्च १७, १९११

प्रिय रिच,

आपके पत्र और तार मिले । आजका दिन बड़ा घटनापूर्ण रहा। आपने जो समाचार दिये हैं उससे मेरा मन हिल गया है। मैंने जैसे ही इस समाचारका कार्ट- राइटसे जिक्र किया उन्होंने कहा :

यह हैं स्मट्स । यदि एक भी गोरा आपके आदमियोंको कोई अधिकार दिये

१. देखिए पिछला शीर्षक । २. यह रिचके उस तारके जवाब में था जिसमें कहा गया था : " जिन्हें बाल्की खाल निकाल्ना और समझौतेकी अनिच्छाका प्रमाण कहा जा सके, ऐसी बातें हमारे समर्थकोंको पसन्द नहीं । मेरी राय में सुद्देपर आग्रह ठीक नहीं ।" (एस० एन० ५३०७) । ३. देखिए " पत्र : जे० जे० डोकको”, पृष्ठ ५०१-०२ ।