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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रान्त में स्थायी निवासका अधिकार मिलेगा। परन्तु उसके अतिरिक्त जनरल स्मट्सका ध्यान इस तथ्य की ओर दिलायें कि सारा संघर्ष ही सिद्धान्तके लिए और रंगभेदके विरुद्ध है । यदि सत्याग्रहियोंको ट्रान्सवाल प्रवासी कानूनमें रंगभेद- पर आपत्ति हो तो वे उसे संघके प्रवासी कानूनमें कैसे स्वीकार कर सकते हैं; जिसमें कि ट्रान्सवालका कानून समाहित हो जायेगा ? यह सही है कि सत्याग्रहियोंने यह माँग न पहले की थी और न अब करते हैं कि शिक्षित या अन्य एशियाई फ्री स्टेटमें प्रवेश पायें । निवेदन करना चाहूँगा कि प्रचुर संख्या में प्रवेशका प्रश्न ही नहीं उठता। वहाँकी अन्य स्थितियाँ और भारतीय जनसंख्याका प्रचुर संख्यामें वहाँ न होना उन स्वतन्त्र शिक्षित एशियाइयोंके [ फ्री स्टेट ] में प्रवेशको रोकने में कारगर होगा जिन्हें वर्तमान विधेयकके अन्तर्गत [ उपनिवेशमें] प्रवेश करने दिया जायेगा । संघ-संसद फ्री स्टेटकी नीतिकी पुष्टि करके संसारको जो यह बता रही है कि कोई भी भारतीय, चाहे वह कोई राजा ही क्यों न हो, संघके किसी प्रान्तमें कानूनी तौर- पर न तो प्रवेश पा सकता है और न निवास कर सकता है, भारतीय केवल उसीका विरोध कर रहे हैं । केप और नेटालके एशियाइयोंके दर्जेमें जबर- दस्त परिवर्तन किये गये हैं । अतः संघ-संसद यदि भारतके बड़ेसे-बड़े सप्तको अपमानित करनेसे इनकार करे और फ्री स्टेटके [ संसद] सदस्य इसपर आपत्ति करें तो वह अनुचित होगा । किन्तु दुर्भाग्यसे यदि वे आपत्ति करें और सरकार उनको नाराज न करना चाहे, तो सादर निवेदन है कि यह विधेयक वापस लिया जाये और ट्रान्सवाल प्रवासी कानूनमें समुचित संशोधन कर दिया जाये जिससे एशियाइयोंकी भावनाके प्रति न्याय हो सके और इस दुखद संघर्षका अन्त हो ।

गांधी

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५३४०) की फोटो नकल और ८-४-१९११ के " इंडियन ओपिनियन' से ।