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४६८. तार : नटेसनको

[ जोहानिसबर्ग मार्च
२४, १९११ ]

अधिनियम और गोखलेको भेजे गये तार देख लें ।

गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें पेंसिलसे लिखे मूल अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ५३७५ ) से ।

४६९. पत्र : एच० एस० एल० पोलकको

मार्च २४, १९११

प्रिय पोलक,

आपका पत्र मिला । मुझे हर्ष है कि आपका दाँत निकल गया। ऐसा बढ़िया दन्त चिकित्सक पानेपर मैं आपको बधाई देता हूँ । मुझे अलबत्ता यह कहना पड़ेगा कि वे एक अपवाद हैं। करामतका मामला बड़ा दुःखद है। वह निश्चय ही बड़ा झूठा है। वह हिदायतोंको नहीं मानेगा, इसलिए उसका इलाज करना कठिन है। अन्यथा मैं सोचता हूँ कि उसकी बीमारी लाइलाज नहीं है । उसे भारत भेजने और वहीं कहीं उसका प्रबन्ध करने तक मैं केवल इतना ही सुझाव दे सकता हूँ कि यदि फीनिक्सके लोग इस विचारको पसन्द करें तो श्री रुस्तमजी उसके लिए एक झोपड़ी बनवा दें और वह उस झोपड़ीमें अकेला रहे और अपना खाना स्वयं पकाये । आश्रम- वासियोंको सख्त हिदायत दे दी जाये कि उसे कुछ और खानेको बिलकुल ही न दिया जाये । इसकी लागत नगण्य होगी। वह अपना समय काफी सहज तरीकेसे बिता सकेगा और उसे कुछ सहानुभूतिपूर्ण संग-साथ भी मिलेगा । वह एक छोटा-सा जमीनका टुकड़ा ले सकता है और चाहे जो उपयोग कर सकता है। ध्यान इतना ही रखना है कि अपनी झोपड़ी और उस टुकड़ेको सुहावना बनाये रखे । उसे फीनिक्स आनेकी आज्ञा तभी मिल सकती है जब, जैसा कि मैंने कहा है, आश्रमवासी इसपर सहमत हों और यदि श्री रुस्तमजी कमसे कम महीने में एक बार उसे स्वयं देख लेनेका जिम्मा १. प्रो० गोखलेको भेजे गये तारके मसविदेके नीचे ही इस तारका मसविदा भी लिखा हुआ है । तार किसे भेजा जाना था, इसका उल्लेख वहाँ नहीं है । गांधीजीने मार्च २४, १९११ को पोल्कके नाम अपने पत्र (पृष्ठ ५२८) में इसका उल्लेख किया है, जिससे जान पड़ता है कि यह तार नटेसनको भेजा गया था। २. देखिए “पत्र : मगनलाल गांधीको ”, पृष्ठ ४३८ ।