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परिशिष्ट २

जोहानिसबर्गके समाचारपत्रोंको पारसी रुस्तमजीका पत्र

जोहानिसबर्ग
फरवरी १२, १९१०

महोदय,

ट्रान्सवालका पुराना निवासी होनेसे मैंने वहाँ दुबारा प्रवेश करनेके अपने अधिकारका प्रयोग करनेकी धृष्टता की थी; इसलिए मुझे ११ फरवरी, १९०९ को फोक्सरस्टमें ६ मासकी सख्त सजा दी गई थी। गत १० अगस्तको सजा पूरी हुई; और मुझे उसी दिन निर्वासित कर दिया गया। मैंने उसी रोज़ फिर से प्रवेश किया । इसपर ११ अगस्तको मुझे फिर छः मासकी सजा सुनाई गई। कल मैं छोड़ दिया गया। ७ अक्तूबरको मैं फोक्सरस्टसे हाउटपूर्ट और वहाँसे डीपक्लूफ भेजा गया था। हाउटपूर्टसे जोहानिसबर्ग ले जाते समय मुझे केवल हथकड़ियाँ पहनाई गई थीं। परन्तु जोहानिसबर्ग से डीपक्लूफका मार्ग तय करते समय हथकड़ीके अतिरिक्त मेरा एक पैर दूसरे एक कैदीके पैरसे मिलाकर दोनोंके पाँवोंमें एक भारी-सी बेड़ी भी पहना दी गई थी।

फोक्सरस्ट और हाउटपूर्टमें मेरी डॉक्टरी जाँच हुई। मैं दुर्बल पाया गया और मुझे एक अतिरिक्त कम्बल दिया गया तथा भोजनमें खास तौर से डबल रोटी और दूध मिलने लगा। मेरी उम्र केवल ४८ वर्ष है, जब कि डॉक्टरोंने मेरो अवस्था ५५ वर्ष आँकी।

पहले दो जेलोंमें, धर्म-सम्बन्धी कारणोंसे मुझे अपनी कस्ती[१] और अपनी टोपी पहने रहने की अनुमति मिल गई थी; और टोपीको मैं गवर्नर अथवा अन्य अधिकारियोंके सामने या भोजन करते समय भी पहन सकता था।

दूसरे दिन सबेरे डीपक्लूफमें चिकित्सा-अधिकारी सब कैदियोंको डाक्टरी परीक्षा करने आया; मेरे साथ मेरे अनेक साथी सत्याग्रही थे। डॉक्टरने हम लोगोंसे शुरूमें ही पूछा: "आखिर तुम लोगों के यहाँ आनेका कारण क्या है?" हममें से एकने कहा, "अन्तरात्मा की आवाज।" उसने प्रत्युत्तर देते हुए कहा: "जहन्नुम में जाये तुम्हारी अन्तरात्मा।" इसके उपरान्त उसने आदेश दिया कि हम सब लोग एक साथ ही अपने-अपने सारे वस्त्र उतार दें। हमने इसपर आपत्ति की। ऐसा करना किसी भारतीयके लिए बहुत ही नागवार लगता है, परन्तु डरकर सबने हुक्मकी तामील की। जब जाँचकी मेरी बारी आई तब मैंने उसे सूचित किया कि फोक्सरस्ट और हाउटपूर्ट दोनों ही जेलोंमें मुझे मरीज़ोंमें शुमार किया जाता था और यह भी बताया कि मुझे विशेष प्रकारका भोजन दिया जाता था। लेकिन चिकित्सा अधिकारीने इतना ही कहा, "तुमको कोई बीमारी नहीं है। तुम जरूरत से ज्यादा मोटे हो।" अब मुझे केवल साधारण खूराक दी जाने लगी, लेकिन हेड-वार्डर मुझे पिछली शामको एक अतिरिक्त कम्बल तो दिला ही चुका था। मुझे उसी समय से कठिन परिश्रमके अन्तर्गत गिट्टी तोड़नेका काम दे दिया गया। मुझे थोड़ी भी देरके लिए सुस्तानेकी इजाजत नहीं थी। मुझसे अपेक्षा की जाती थी कि मेरी हथौड़ी बिना रुके चलती ही रहे। तीसरे दिन मुझमें काम करनेका सामर्थ्य नहीं बचा। मैंने यह शिकायत पेश की, पर निगरानीके लिए तैनात वार्डरने कुछ भी कर सकनेमें अपनी असमर्थता जताई और कहा, "तुम्हें अपनी बीमारीकी इत्तिला भेजनी चाहिए, लेकिन मुझे जबतक कोई दूसरी हिदायत नहीं मिलती तबतक तुमसे लगातार काम लेना ही

  1. पारसियोंका जनेऊ।