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परिशिष्ट ९

केपके ब्रिटिश भारतीय संघका प्रार्थनापत्र

केप टाउन
मार्च १५, १९११

(१) उक्त संघ (असोसिएशन) के तत्वावधानमें इसी १२ तारीखको ब्रिटिश भारतीयोंकी जो सार्वजनिक सभा हुई थी उसमें सर्वसम्मतिसे एक प्रस्ताव पास किया गया था । इस प्रस्तावमें आपके प्रार्थियोंको निर्देश दिया गया है कि सम्मान्य सदनको प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयक १९११ के विषय में, जो इस समय सदनके सामने है, प्रार्थनापत्र दिया जाये ।

(२) आपके प्रार्थियोंको यद्यपि इस बातका बहुत दुःख है कि संघ में वैध रूपसे बसे हुए टिश भारतीयोंपर एक प्रान्तसे दूसरे प्रान्तमें स्वतन्त्रतापूर्वक जाने-आनेके वर्तमान प्रतिबन्ध कायम रखे जायेंगे; फिर भी लोगों के मनमें जो द्वेष-भाव दुर्भाग्यते घर कर गया है उसकी ओरसे आँख बन्द रखना वे उचित नहीं समझते । फलतः वे सरकारके इस निर्णयको स्वीकार करते हैं और यह प्रबल आशा रखते हैं कि भविष्य में गलतफहमी दूर हो जानेपर प्रतिबन्ध हटा दिये जायेंगे ।

(३) किन्तु आपके प्रार्थियोंकी यह उत्कट इच्छा है कि वे सम्मान्य सदनका ध्यान इस ओर खीचें कि निम्नलिखित बातोंमें इस प्रान्तके वैध निवासियोंकी हैसियत से उनकी स्थिति और भी बिगड़ जायेगी :

(क) प्रान्तके वर्तमान कानूनोंमें भावी प्रवासी अपनी शिक्षा परीक्षाकी यूरोपीय भाषा स्वयं अस्थान चुनता है; इसके बजाय भाषाका चुनाव पूरी तरह प्रवासी अधिकारीके हाथमें चला जायेगा ।
(ख) आपके प्रार्थी निवेदन करते हैं कि प्रवासी अधिकारीको अनेक ऐसे निरंकुश अधिकार दिये जानेवाले हैं जिनके कारण लोगोंको बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा ।
(ग) वैध अधिवासियोंकी पत्नियों और उनके नाबालिग बच्चोंको निषिद्ध प्रवासी करार दिये जाकर निर्वासनके खतरेसे बचाव नहीं होता ।
(घ) प्रान्तमें उत्पन्न ब्रिटिश भारतीयों और उसमें वैध रूपसे रहनेवाले अन्य लोगोंको, जो स्थायी रूपसे बाहर गये हुए हैं, वापस आनेपर शिक्षा परीक्षा पास करनेके लिए कहा जा सकता है और उसमें अनुत्तीर्ण होनेकी अवस्थामें वे प्रवेशसे रोके जा सकते हैं।
(ङ) सम्भव है कि थोड़े समय के लिए बाहर जानेके इच्छुक प्रान्तके अधिवासी ब्रिटिश भार- तीयोंको आजकी तरह मिलनेवाले अनुमतिपत्र न दिये जाये । तब या तो वे दूसरे देशमें जरूरी कारवार चलानेके लिए न जा सकेंगे या उन्हें वापस लौटनेपर इनकारीके खतरेका सामना करना होगा । आपके प्रार्थी नम्रतापूर्वक निवेदन करते हैं कि उन सभीको अधिवासपत्र दे दिये जायें जो इसके लिए अर्जी दें और जो निर्धारित की जानेवाली किसी अवधि तक प्रान्तमें अपना निवास सिद्ध कर सकें ।
(च) विचाराधीन विधेयकमें प्रवासी अधिकारियोंके निर्णयके विरुद्ध, भले ही वह मनमाना हो, संवकी अदालतों में अपील करनेके अधिकारकी व्यवस्था नहीं है ।

१. विधानसभाको लिखा गया यह प्रार्थनापत्र, जिसपर सर्व श्री आदम एच० गुल मुहम्मद, शमशुद्दीन कासिम अली और अब्दुल हमीद गुल, एम० बी० ने केपके ब्रिटिश इंडियन यूनियनके अध्यक्ष और संयुक्त अवैतनिक मन्त्रियोंके रूपमें हस्ताक्षर किये थे, संसदको दिया गया था ।