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परिशिष्ट

(४) इसलिए आपके प्रार्थी विनयपूर्वक निवेदन करते हैं कि सम्मान्य सदन विषेयकर्मे नम्रतापूर्वक और सम्मानपूर्वक दिये गये ऊपरके सुझावों के अनुसार संशोधन कर दे और इस प्रकार वे संघ और प्रान्तके कानूनके अन्तर्गत अबतक जिन अधिकारोंका उपभोग करते रहे हैं उन्हें कायम रखे; या उन्हें कोई ऐसी दूसरी राहत दे जिसे वह उचित समझता हो ।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २५-३-१९११

परिशिष्ट १०

लेनका गांधीजीको पत्र

मार्च १६, १९१११

प्रिय श्री गांधी,

मेरे इसी ४ तारीखके तारके सम्बन्ध में; मेरा इरादा आपपर यह प्रकट करना नहीं था कि औरज फ्री स्टेटके विधानका परिच्छेद ३३ रद कर दिया जायेगा । कार्यक्रममें इसकी कोई व्यवस्था नहीं की गई थी और सरकारका इरादा उस परिच्छेदको रद करनेका कभी नहीं था ।

एक संशोधन पेश किया जायेगा जिसके फलस्वरूप शिक्षित भारतीय प्रवासी १९०८ के ट्रान्सवाल अधिनियम सं० ३६ के अन्तर्गत पंजीयनसे मुक्त हो जायेंगे। तब उन्हें नेटाल और ट्रान्सवाल उपनिवेशों में रहने और यात्रा करने का पूरा अधिकार होगा; किन्तु उन्हें ऑरेंज फ्री स्टेटमें रहनेके लिए उसके स्थानीय कानूनकी धाराओंका पालन करना पड़ेगा ।

आपके उठाये दूसरे मुद्देके सम्बन्धमें, मुझे दुःखके साथ कहना पड़ता है कि विभाग इस कठिनाईको समझ नहीं पा रहा है और आशा है आप इस मामलेपर पुनः विचार किये जानेके अवसरपर अधिक तफसीलके साथ अपने विचार रखनेकी कृपा करेंगे ।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २५-३-१९११

१. यह तारीख इंडियन ओपिनियनमें १० मार्च छपी है। किन्तु गांधीजी अपने उत्तर में इसका उल्लेख '१६ तारीखके पत्र' से करते हैं; देखिए पत्र ई० एफ० सी० लेनको', पृष्ठ ५१२ ।