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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वे एक-राष्ट्र होनेके योग्य नहीं । यदि हिन्दू ऐसा मानें कि सारे भारतमें हिन्दू ही हिन्दू रहें, तो यह स्वप्न है । मुसलमान ऐसा सोचें कि उसमें केवल मुसलमान ही रहें, तो उसे भी स्वप्न समझिए। फिर भी हिन्दू, मुसलमान, पारसी, ईसाई, जो इस देशको अपना मुल्क बनाकर रह रहे हैं, वे एक-देशी, एक-मुल्की हैं। वे देशबन्धु हैं और उन्हें एक-दूसरेके स्वार्थके लिए भी एक होकर रहना पड़ेगा।

दुनियाके किसी भी भागमें एक राष्ट्रका अर्थ एक-धर्म नहीं हुआ। हिन्दुस्तान में भी नहीं था ।

पाठक : किन्तु कट्टर दुश्मनीके बारेमें आपका क्या कहना है ?

सम्पादक : 'कट्टर दुश्मनी' शब्द दोनोंके दुश्मनोंने खोजकर निकाला है। जव हिन्दू-मुसलमान लड़ते थे, तब ऐसी बातें जरूर चलती थीं। किन्तु हमारा लड़ना तो कबका बन्द हो गया है। फिर कट्टर दुश्मनी किस बातकी ? इसके सिवा यह याद रखना चाहिए कि अंग्रेजोंके आनेके बाद ही हमने लड़ना बन्द किया हो, ऐसी बात नहीं है। हिन्दू मुसलमान बादशाहोंके नीचे और मुसलमान हिन्दू राजाओंके नीचे रहते आये हैं । दोनोंको ही बादमें मालूम हो गया कि लड़नेसे किसीको लाभ नहीं । लड़नेसे कोई अपना धर्म नहीं छोड़ता और इसी तरह कोई अपनी हठ भी नहीं छोड़ता। इसलिए दोनोंने मिलकर रहना निश्चित किया । टंटे तो फिर अंग्रेजोंने शुरू कराये ।

‘मियाँ और महादेवकी नहीं बनती', इस कहावतको भी इसी तरह समझिये । कुछ कहावतें बच रहती हैं और नुकसान पहुँचाया करती हैं। हम कहावतकी धुनमें यह भी याद नहीं रखते कि अनेक हिन्दू और मुसलमानोंके बाप-दादे एक ही थे; हम लोगोंकी नसोंमें एक ही रक्त बहता है। क्या धर्म बदलनेसे हम दुश्मन हो गये ? क्या दोनोंका ईश्वर अलग-अलग है ? धर्म तो एक ही जगह पहुँचनेके अलग-अलग रास्ते हैं। हम दोनों अलग-अलग मार्ग अपनाते हैं। इससे क्या होता है ? इसमें दुःखकी क्या बात है ?

इसके सिवा ऐसी कहावतें शैव और वैष्णवोंमें भी पाई जाती हैं। इस आधार- पर कोई यह नहीं कहर्ता कि वे एक-राष्ट्र नहीं हैं। वैदिक धर्मियों और जैनियोंमें बड़ा अन्तर माना जाता है; फिर भी इस कारण वे दो अलग-अलग राष्ट्र नहीं हो जाते । हम गुलाम हो गये हैं, इसीलिए हम अपने झगड़े तीसरेके पास ले जाते हैं।

जिस तरह मुसलमान मूर्ति-भंजक है, उसी प्रकार हिन्दुओंमें भी ऐसी शाखा देखनेमें आती है। जैसे-जैसे वास्तविक ज्ञान बढ़ता जायेगा, वैसे-वैसे हम समझेंगे कि अन्य व्यक्ति यदि ऐसे धर्मका पालन करता हो जो हमें पसन्द नहीं आता, तो इसीलिए हमारा उसके प्रति वैर-भाव रखना उचित नहीं है। हमें उसके साथ जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए ।

पाठक : अब गो-रक्षाके विषयमें अपने विचार बताइए ?

सम्पादक : मैं स्वयं गायकी पूजा करता हूँ, अर्थात् उसे सम्मान देता हूँ । गाय भारतकी रक्षक है, क्योंकि उसकी सन्तानपर भारतका, जो एक कृषि प्रधान देश है,

१. अंग्रेजी पाठ में यह वाक्य छोड़ दिया गया है ।



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