पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७
हिंदी स्वराज्य

पाठक : आपने जो कहा है, उसपर मैं विचार करूंगा। किन्तु एक सवाल तो इसी समय मनमें उठ रहा है। आपने भारतमें मुसलमानोंके प्रवेशके पहलेकी स्थितिकी बात की । किन्तु अब तो मुसलमान, पारसी, ईसाई आदि बड़ी संख्यामें हैं। उनका एक- राष्ट्र होना सम्भव नहीं है। कहते हैं कि हिन्दू-मुसलमानोंमें स्वाभाविक विरोध है। हमारी कहावत भी ऐसी ही है कि “मियाँ और महादेवकी नहीं बनती। मुसलमान हिन्दूको बुतपरस्त • मूर्तिपूजक -- कहकर उसका तिरस्कार करता है। हिन्दू मूर्ति- पूजक है, मुसलमान मूर्ति-भंजक है। हिन्दू गायकी पूजा करता है, मुसलमान उसे मारता है। हिन्दू अहिंसक है, मुसलमान हिंसक। इस तरह कदम-कदमपर विरोध है । वह कैसे मिट सकता है और भारत एक किस प्रकार हो सकता है ?

अध्याय १० : भारतकी दशा (जारी) : हिन्दू-मुसलमान

सम्पादक : आपका अन्तिम प्रश्न बड़ा गम्भीर जान पड़ता है, किन्तु विचार करनेपर वह सरल ही सिद्ध होगा। इस सवालके उत्पन्न होनेका कारण भी रेलवे, वकील और डॉक्टर हैं। वकील और डॉक्टरके बारेमें अब हमें विचार करना पड़ेगा; रेलवेके विषयमें विचार कर चुके। इतना मैं और कह दूं कि आदमी बनाया इस तरह गया है कि उसे अपने हाथ-पाँवसे जितना बने, उतना ही आना-जाना करना चाहिए। यदि हम रेलवे आदि साधनोंसे कोई भाग-दौड़ न करें, तो हमारे सामने उलझनोंसे भरे हुए बहुत-से सवाल उपस्थित ही न हों। हम अपने हाथों दुःख बुलाते हैं। मनुष्यकी सीमा ईश्वरने उसकी शारीरिक रचनासे ही बाँध दी, तो मनुष्यने उस सीमाका उल्लंघन करनेके उपाय खोज निकाले। मनुष्यको अक्ल इसलिए दी गई है कि वह उससे ईश्वरको पहचाने, परन्तु मनुष्यने उसका उपयोग उसे भूलनेमें किया । मैं अपनी स्वाभाविक सीमाके मुताबिक केवल अपने आसपास रहनेवाले लोगोंकी सेवा ही कर सकता हूँ । किन्तु मैंने फौरन अपने अभिमानमें यह आविष्कार कर डाला कि मुझे तो अपने शरीरसे सारी दुनियाकी सेवा करनी है। ऐसा करते हुए अनेक धर्मों और विभिन्न स्वभावोंके मनुष्य एक-दूसरेके सम्पर्कमें आते हैं। वह बोझा मनुष्य उठा ही नहीं सकता, इसलिए बादमें व्याकुल होता है। इस विचारके अनुसार आप समझ जायेंगे कि रेलवे वास्तव में एक खतरनाक साधन है। मनुष्य उसका उपयोग करके ईश्वरको भूल गया है ।

पाठक : किन्तु मैं तो अब अपने उठाये हुए सवालोंका जवाब पानेके लिए अधीर हो गया हूँ। मुसलमानोंके आनेके बाद [ भारत ] एक-राष्ट्र रहा या नहीं ?

सम्पादक: भारतमें चाहे जिस धर्मके लोग रहे। इसके कारण [उसकी] एक- राष्ट्रीयता मिटनेवाली नहीं है। नये आनेवाले लोग राष्ट्रीयताको नहीं मिटा सकते । वे राष्ट्रमें घुल-मिल जाते हैं। जब ऐसा होता है, तभी कोई देश एक-राष्ट्र कहलाता है। उस देशमें दूसरे लोगोंको अपनेमें मिला लेनेका गुण होना चाहिए। ऐसा भारतमें था, और है। यों वास्तवमें, कह सकते हैं, जितने व्यक्ति, उतने धर्म । एक राष्ट्र होकर रहनेवाले लोग एक-दूसरेके धर्मके आड़े नहीं आते। यदि आयें तो समझना चाहिए कि



Gandhi Heritage Portal