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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वे हरएक जातिके रीति-रिवाज जाननेका दिखावा करते हैं। ईश्वरने मन तो छोटा दिया है, किन्तु वे बड़े-बड़े ईश्वरीय दावे करते हैं और तरह-तरहके प्रयोग करते हैं। वे स्वयं अपना ढोल बजाते हैं और हमारे मनमें अपने बड़प्पनका विश्वास जमाते रहते हैं । हम भोलेपनमें उस सबपर भरोसा कर लेते हैं ।

जो उल्टा नहीं देखना चाहते, वे देख सकते हैं कि 'कुरानशरीफ' में ऐसे सैकड़ों वचन हैं जो हिन्दुओंको मान्य होंगे; [ इसी तरह ] 'भगवद्गीता' में [ बहुत-कुछ ] ऐसा लिखा हुआ है कि जिसके विरोधमें मुसलमानोंको कहनेके लिए कुछ नहीं रहता । 'कुरानशरीफ' की कुछ बातें मेरी समझमें न आयें अथवा मुझे पसन्द न पड़ें, तो क्या इसलिए मैं उसके माननेवालोंका तिरस्कार करूँ ? झगड़ा तो दोमें ही हो सकता है। यदि मुझे न झगड़ना हो, तो मुसलमान क्या कर सकता है ? और यदि मुसलमानको न झगड़ना हो, तो मैं क्या कर सकता हूँ? हवामें घूंसा मारनेवालेका हाथ झटका खा जाता है। यदि सब अपने-अपने धर्मका स्वरूप समझें और उसका पालन करें तथा पण्डितों और मुल्लाओंको बीचमें न आने दें, तो झगड़ेका मुँह काला हो जायेगा ।

पाठक: अंग्रेज दोनों कौमोंके बीच बनने देंगे ?

सम्पादक : यह सवाल कायर व्यक्तिका है। इससे हमारी हीनता प्रकट होती है । दो भाइयोंको मिलकर रहना हो, तो कौन उनमें फूट डाल सकता है ? यदि तीसरा व्यक्ति उनके बीच तकरार करा सके, तो हम उन भाइयोंको कच्ची बुद्धिका कहेंगे । इसी प्रकार यदि हम हिन्दू और मुसलमान कच्ची बुद्धिके हों, तो फिर उसमें अंग्रेजोंका दोष निकालनेकी कोई बात नहीं बचती। कच्चा घड़ा एक कंकरसे नहीं तो दूसरे कंकरसे फूट ही जायेगा । उसको बचानेका उपाय घड़ेको कंकरसे दूर रखना नहीं, बल्कि उसे पक्का करना है जिससे कंकरका भय न रहे। इसी तरह हमें भी पक्की बुद्धिका बनना है। इसके सिवा यदि दोमें से एक पक्की बुद्धिका हो, तो तीसरेकी कुछ नहीं चलेगी। हिन्दू इस कामको आसानीसे कर सकते हैं। उनकी संख्या बहुत है । वे अधिक पढ़े- लिखे हैं, ऐसी उनकी मान्यता है । इसलिए वे अपनी बुद्धि स्थिर रख सकते हैं।'

दोनों समाजोंके बीच अविश्वास है। इसलिए मुसलमान लॉर्ड मॉर्लेसे अमुक अघि- कार माँगते हैं। हिन्दू इसका विरोध किसलिए करें ? यदि हिन्दू विरोध न करें तो अंग्रेज चौंक जायें, मुसलमान धीरे-धीरे विश्वास करने लगें और भाईचारा बढ़े। अपनी तकरार उनके पास ले जाते हुए हमें शर्म आनी चाहिए। इससे हिन्दू कुछ खोयेंगे नहीं। इसका आप स्वयं हिसाब लगाकर देख सकते हैं। जो व्यक्ति दूसरेके ऊपर विश्वास कर सकता है, उसने आजतक कभी कुछ नहीं खोया ।

मैं यह नहीं कहना चाहता कि हिन्दू-मुसलमान कभी लड़ेंगे ही नहीं। दो भाई एक-साथ रहते हैं, तो तकरार भी होती है। कभी-कभी हमारे सिर फूटेंगे । ऐसा होना जरूरी नहीं है। किन्तु सभी व्यक्ति समान मतिके नहीं हो सकते । आवेशमें आ जानेसे कई बार लोग गलत काम कर बैठते हैं। वह हमें सहन करना पड़ेगा | किन्तु

१. अंग्रेजी पाठमें : “इसलिए मुसलमानोंके साथ अपने मोठे सम्बन्धोंपर आक्रमणसे वे अपनेको ज्यादा अच्छी तरह बचा सकते हैं । "


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