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हम वैसे झगड़े भी बड़ी वकालत बघार कर अंग्रेजोंकी अदालतमें नहीं ले जायेंगे। दो व्यक्ति लड़ें, दोनोंके अथवा एकका सिर फूट जाये; बादमें तीसरा क्या न्याय करने- वाला है ? जो लड़ेगा, वह जख्मी होगा, यह पक्की बात है। दो व्यक्ति भिड़ें, तो उसकी कुछ-न-कुछ निशानी बचेगी ही। इसका कोई क्या निबटारा करेगा ?

अध्याय ११ : भारतकी दशा ( जारी ) : वकील

पाठक: आप जो कहते हैं कि दो आदमी लड़ें, तो उसका निबटारा भी न कराया जाये। यह तो आपने अजीब बात निकाली।

सम्पादक: आप अजीब कहें, चाहे कोई दूसरा विशेषण दें; किन्तु यह बात है ठीक । और आपकी शंका हमें वकील और डॉक्टरोंकी याद दिला देती है। मेरा मत है कि वकीलोंने भारतको गुलामीमें डाला है और उन्होंने हिन्दू-मुसलमानोंके झगड़े बढ़ाये हैं; उन्होंने अंग्रेजी सत्ताको फैलाया है।

पाठक: ऐसा दोषारोपण करना सरल है; किन्तु इसे सिद्ध करना मुश्किल पड़ेगा। बिना वकीलोंके हमें स्वतन्त्रताका मार्ग कौन बताता ? उनके बिना गरीबकी रक्षा कौन करता ? कौन उनके बिना न्याय दिलवाता ? विचार कीजिये, स्वर्गीय मन- मोहन घोषने कितने लोगोंको बचाया ! उन्होंने उसके बदले एक पाई भी नहीं ली। जिस कांग्रेसका आपने इतना बखान किया, वह वकीलोंके बलपर टिकी है और उनके परिश्रमसे वहाँ काम हो रहा । यदि आप इस वर्गकी निन्दा करें, तो यह तो अन्याय कहलायेगा । यह तो आपके हाथमें एक अखबार है, इसलिए जो भी जीमें आये सो कहनेकी छूट लेने जैसी बात हुई ।

सम्पादक: आपकी जो मान्यता है, कभी मेरी भी वही मान्यता थी। मैं यह नहीं कहना चाहता कि वकीलोंने किसी दिन कुछ भी अच्छा नहीं किया। श्री मन- मोहन घोषका मैं सम्मान करता हूँ। उन्होंने गरीबोंकी मदद की, यह बात सही है। यह भी माना जा सकता है कि कांग्रेसमें वकीलोंने बहुत कुछ किया है। वकील भी मनुष्य हैं और मनुष्यमें कुछ-न-कुछ अच्छाई तो है ही। वकीलोंकी अच्छाईके बहुतेरे उदाहरण देखनेमें आते हैं, वे तब सम्भव हुए हैं जब वे यह भूल गये कि वे वकील हैं। मैं तो आपसे इतना ही कहना चाहता हूँ कि उनका धन्धा उन्हें अनीति सिखाता है। वे गलत लालचमें पड़ जाते हैं। उसमें उबरनेवाले थोड़े ही हैं ।

[ मान लीजिए] हिन्दू और मुसलमान लड़े। कोई तटस्थ आदमी तो उनसे यही कहेगा कि इसे भूल जाओ। गलती दोनोंकी हो सकती है। दोनों मिलकर रहो। अगर ये वकीलके पास गये तो वकीलका यह कर्तव्य हो गया कि वह अपने मुवक्किलका पक्ष ले। उसका काम है कि वह उसके पक्षमें ऐसी दलीलें ढूंढ़ निकाले जो स्वयं उसके खयालमें न आई हों। यदि वह ऐसा न करे, तो समझा जाता है कि वह अपने धन्धेपर कलंक लगाता है। इसलिए वकील तो संघर्षको ज्यादातर बढ़ानेकी ही सलाह देगा।

१. (१८४४-९६), सर्व प्रथम भारतीय वैरिस्टर, इंडियन मिररके संस्थापक और सम्पादक ।


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