हमारे पूर्वजोंने देखा कि यन्त्र आदिके जंजालमें पड़ेंगे, तो अन्तमें गुलाम ही बनेंगे और अपनी नैतिकता छोड़ देंगे। उन्होंने विचारपूर्वक यह कहा कि हमें अपने हाथ-पाँवसे जितना बने, उतना ही करना चाहिए। हाथ-पाँवोंका उपयोग करनेमें ही सच्चा सुख है, और उसीमें स्वास्थ्य है ।
उन्होंने सोचा कि बड़े-बड़े शहर बसाना बेकारकी झंझट । इससे लोगोंको सुख नहीं मिलेगा। उसमें बदमाशोंकी टोलियाँ और वेश्याओंकी गलियाँ बसेंगी और गरीब अमीरके हाथों लुटेंगे। इसलिए उन्होंने छोटे-छोटे गाँवोंमें सन्तोष माना ।
उन्होंने देखा कि राजाओं और उनकी तलवारोंकी अपेक्षा नैतिक शक्ति अधिक बलवान है, इसलिए उन्होंने राजाओंको नीतिमान पुरुषों -- ऋषियों और फकीरोंसे कम दरजेका माना है।
जिस राष्ट्रकी प्रजाकी ऐसी प्रकृति हो, वह दूसरोंको सिखाने योग्य है, किसीसे सीखने योग्य नहीं ।
इस समाजमें अदालतें थीं, वकील थे, चिकित्सक थे, किन्तु उनकी एक बँधी हुई मर्यादा थी। सभी जानते थे कि ये धन्धे कोई ऐसे प्रतिष्ठित धन्धे नहीं हैं। इसके सिवा वकील, वैद्य आदि लोगोंको लूटते नहीं थे; वे तो लोगोंके आश्रित थे । वे लोगोंके मालिक नहीं बन जाते थे । न्याय काफी अच्छा होता था। अदालत में न जाना ही लोगोंका नियम था । उनको भ्रमित करनेके लिए स्वार्थी व्यक्ति नहीं थे। जो थोड़ी खराबी थी, वह भी केवल राजा और राजधानीके आसपास ही थी सामान्य प्रजा तो उससे अलग रहकर अपने खेतोंका राज भोगती थी। सच्चा स्वराज्य उसके हाथमें था ।
और जहाँ यह चाण्डाल सभ्यता नहीं पहुँची है, वहाँ आज भी वैसा विद्यमान है। उससे यदि हम अपने नये ढोंगोंकी बात करेंगे, तो वह हमारी हँसी उड़ायेगा । उसपर अंग्रेज राज्य नहीं करते, न आप कर सकेंगे ।
जिस जनताका नाम लेकर हम बातें करते हैं, हम उसे नहीं पहचानते, न वह हमें पहचानती है। आप अथवा अन्य जिन लोगोंको देशकी लगन हो, उनसे मेरा यह कहना है कि आप देशमें - जहाँ रेलका उपद्रव नहीं पहुँचा है वहाँ, छः महीने घूम आयें और फिर देशकी लगन लगायें; इसके बाद ही स्वराज्यकी बातें करें।
अब आपने देख लिया कि मैं वास्तविक सभ्यता किसे कहता हूँ । ऊपर मैंने जो चित्र खींचा है वैसा भारत जहाँ हो वहाँ जो व्यक्ति परिवर्तन करेगा, उसे देशका दुश्मन समझिए । वह मनुष्य पापी है ।
पाठक: आपने जैसा कहा यदि भारत वैसा ही हो, तब तो ठीक है। किन्तु जिस देशमें हजारों बाल-विधवाएँ हैं, जिस देशमें दो वर्षकी बालिकाका विवाह हो जाता है, जिस देशमें १२ वर्षके लड़के-लड़कियाँ गृहस्थी चलाते हैं, जिस देशमें स्त्रियाँ एकसे अधिक पति करती हैं, जिस देशमें नियोगका चलन है, जिस देशमें धर्मके नाम- पर कुमारिकाएँ वेश्या बनती हैं, जिस देशमें धर्मके नामपर पाड़ों और बकरोंका वध
१. मूल पाठमें 'अमीरके हाथों' - - ये शब्द नहीं हैं ।
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