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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अपनी आपत्तियोंको हटा देती है। भारतके बेटोंमें कोई न कोई कमी थी, इसलिए उसकी सभ्यता आपत्तियोंसे घिर गई। लेकिन इस बन्धनसे छूटनेकी शक्ति उसमें है और इससे उसका गौरव प्रकट होता है ।

इसके सिवा सारा भारत उससे घिरा हुआ नहीं है। जिन्होंने पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त की है और उसके पाशमें पड़े हुए हैं वे ही गुलामीमें घिरे हुए हैं। हम सारे जगतको अपनी दमड़ीके मापसे मापते हैं। यदि हम गुलाम हों, तो सारे जगतको वैसा ही समझ लेते हैं। हम गिरी हुई हालतमें हैं, इसलिए सारे भारतको वैसा ही मान लेते हैं। दरअसल ऐसा कुछ है नहीं। फिर भी ऐसा मानना ठीक है कि हमारी गुलामी सारे देशकी गुलामी है । तथापि यदि हम ऊपरकी बात ध्यानमें रखें और सोचें, तो यह बात समझमें आ जायेगी। यदि हमारी गुलामी नष्ट हो जाये तो भारतकी गुलामी भी नष्ट हो जायेगी। आपको अब स्वराज्यकी व्याख्या भी इसीमें मिल जायेगी । स्वराज्यका अर्थ है अपने ऊपर अपना ही राज्य । और ऐसा राज्य हमारी मुट्ठीमें है।

इस स्वराज्यको आप स्वप्न न समझें । मनमें उसकी कल्पना करके बैठ जाना स्वराज्य नहीं है। यह तो ऐसा स्वराज्य है कि यदि आपने उसे चख लिया, तो आप आजीवन दूसरोंको उसका स्वाद चखानेके लिए यत्न करते रहेंगे। मुख्य बात तो हर व्यक्तिके स्वराज्य भोगनेकी है। डूबनेवाला दूसरोंको नहीं तार सकता, तैरने- वाला तार सकता है। हम स्वयं गुलाम रहें और दूसरोंको स्वतन्त्र करनेकी बात करें, यह बननेवाली बात नहीं है ।

किन्तु इतना ही काफी नहीं है। हमें अभी और भी सोचना पड़ेगा । अब आप इतना तो समझ ही गये होंगे कि हमें अंग्रेजोंको निकालनेकी प्रतिज्ञा करना जरूरी नहीं है। यदि अंग्रेज भारतीय बनकर रहें, तो हम [ भारतमें ] उनका समावेश कर सकते हैं। यदि अंग्रेज अपनी सभ्यताको लेकर यहाँ रहना चाहें, तो भारतमें उनके लिए स्थान नहीं है। ऐसी परिस्थिति उत्पन्न करना हमारे हाथमें है ।

पाठक: अंग्रेज भारतीय बन जायें, आप ऐसा कह रहे हैं। यह तो नामुमकिन है।

सम्पादक: हमारा ऐसा कहना तो यह कहनेके बराबर हो जायेगा कि अंग्रेज मनुष्य नहीं हैं। वे हमारे जैसे बनते हैं या नहीं, इसकी हमें चिन्ता नहीं है। हम तो अपना घर सुधारें। फिर उसमें रहने लायक लोग ही उसमें रहेंगे, दूसरे अपने आप चले जायेंगे। प्रत्येक व्यक्तिको ऐसा अनुभव हुआ होगा।

पाठक: इतिहासमें तो ऐसा होनेकी बात हमने नहीं पढ़ी।

सम्पादक : जिसे इतिहास में न पढ़ा हो, वह हो नहीं सकता, ऐसा मानना हमारी हीनता है। जो बात हमारी बुद्धिमें आ सकती है, आखिरकार उसे हमें आजमाना अवश्य चाहिए ।

प्रत्येक देशकी स्थिति एक-सी नहीं होती। भारतकी स्थिति विचित्र है। उसका बल अमाप है। इसलिए दूसरे इतिहासोंसे हमारा बहुत थोड़ा सम्बन्ध है। मैंने आपसे कहा कि जब दूसरी सभ्यताएँ नष्ट हो गईं, तब भी भारतीय सभ्यतापर आँच नहीं आ

पाठक : मुझे ये सारी बातें ठीक नहीं जँचतीं। हमें अंग्रेजोंको लड़कर ही निकालना होगा, इसमें कोई शक नहीं है। जबतक वे हमारे देशमें हैं, तबतक हमें चैन नहीं


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