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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


उनको नगण्य माना और अनेक बार उनके प्रति निष्ठुर हो गया हूँ। ये सारे आरोप उसने मेरे ऊपर बहुत विनयपूर्वक लगाये और उन्हें लगाते हुए वह बहुत सकुचाया भी। उसके मनमें पैसेका कोई खयाल नहीं है। उसके सारे आरोप मेरे व्यवहारके ही खिलाफ थे। दूसरे पिताओंकी तरह मैंने उनकी सराहना नहीं की, उनको प्रोत्साहन नहीं दिया और उनके लिए खास कुछ भी नहीं किया। बल्कि मैंने उन्हें और बा को हमेशा पीछे रखा। यह सारा गुबार निकालनेके बाद उसका मन बहुत शान्त हो गया है, ऐसा मुझे लगा। मैंने उसे समझाया कि उसका इस प्रकार सोचना सही नहीं है। अपनी कुछ गलतियाँ तो वह देख भी सका। बाकी गलतियाँ अधिक विचार करने- पर ही दूर कर सकेगा। फिलहाल तो वह शान्त मनसे गया है और जिस विषयमें मुझे [उससे] असन्तोष है, उस विषयमें ज्ञान प्राप्त करनेका उसने संकल्प किया है। संस्कृतका अध्ययन करनेकी उसकी बड़ी इच्छा है। हमारी भाषा गुजराती है, इसलिए उसकी शिक्षा मुख्यत: गुजरातमें ही होनी चाहिए, इस विचारसे मैंने हरिलालको अहमदाबादमें रहनेकी सलाह दी है। मेरा खयाल है कि वह वैसा ही करेगा। फिर भी मैंने उसे स्वतन्त्रता दी है। मुझे लगता है कि इसका परिणाम ठीक ही होगा।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ५०८७) से। सौजन्य : राधाबेन चौधरी

६४. पत्र: मगनलाल गांधीको

सोमवार [मई १८, १९११के बाद][१]


चि० मगनलाल,

छगनलालका पत्र तथा अन्य कागज भेज रहा हूँ। मुझे उसके पत्रकी एक नकल डॉ० मेहताने भी भेजी थी। तुम व्यर्थ ही अंग्रेजी भाषाके ज्ञानकी कमीको लेकर उदास रहा करते हो। यह भाषा कुछ अपनी नहीं है। यथासम्भव' अच्छी तरह उसमें अपने विचार प्रकट कर देना काफी है। यह तुम्हारा हौसला बढ़ानेके विचारसे लिख रहा हूँ, न कि इसलिए कि तुम उसमें जितनी निपुणता प्राप्त कर सकते हो, उतनी प्राप्त न करो। वैसी निपुणता प्राप्त करनेके लिए और विलायतके वातावरणका अनुभव

  1. श्रीमती वॉगलने एक बाजार सन् १९१०में लगाया था और दूसरा सन् १९११में । किन्तु, हरिलाल गांधीके उल्लेखसे जान पड़ता है कि यह पत्र सन् १९११में ही लिखा गया था, क्योंकि वे उसी वर्ष मई महीनेकी १५ और १८ तारीखके बीच पितृ-गृह छोड़कर भारत चले गये थे (देखिए मई १५ और मई १८ को मगनलाल गांधीके नाम लिखे पत्र, पृष्ठ ७३-७४ और पिछला शीर्षक)। फिर, इसमें मगनलाल गांधोंके अंग्रेजी-विषयक शानका भी उल्लेख है और इस बातका जिक उनके नाम लिखे पिछले शीर्षकमें भी है। इस सबसे जान पड़ता है कि यह पत्र उक्त पत्र, यानी१८ मईको लिखे पत्रके आसपास ही लिखा गया था।