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सत्याग्रहियोंको सूचना


इस प्रान्तमें स्थायी निवासीके रूपमें रहने दिया जायेगा[१]; फिर भी उसका खयाल है कि ऐसी ही सुविधाएँ उन शिक्षित भारतीयोंको दी जानी चाहिए जो विश्वस्त मुनीमों या सहायकोंके रूपमें अपेक्षित हों। शिष्टमण्डलकी रायमें इसकी सख्त जरूरत है। अभी कुछ दिन पूर्व एक प्रतिष्ठित व्यापारी, श्री अमीर साहबको बीमारीके कारण अपनी अनुपस्थितिकी अवधिमें व्यवसायकी देख-रेख करनेके लिए एक सहायक बुलवा लेना आवश्यक हो गया था; किन्तु उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी गई।

(२) सन् १९०८ के एशियाई अधिनियमके अनुसार ट्रान्सवालमें केवल वे ही लोग पुनः प्रवेश कर सकते हैं जो वहाँ युद्धसे पूर्व तीन वर्षका निवास सिद्ध कर दें। अब चूंकि सरकारने कृपापूर्वक यह सुविधा दे दी है कि जो सत्याग्रही युद्धसे पूर्व तीन वर्षका अपना निवास सिद्ध कर देंगे वे अधिनियम ३६ के अन्तर्गत अपने अधिकारोंका उपयोग कर सकते हैं, भले ही वे कानून द्वारा निर्धारित अवधिमें[२] प्रार्थनापत्र न दे सके हों, इसलिए शिष्टमण्डल अनुरोध करता है कि उन लोगोंके दावे भी मान लिये जायें जिन्हें युद्धसे पहले ट्रान्सवालमें रहते हुए पूरे तीन वर्ष तो नहीं हो पाये थे किन्तु जिनके वहाँसे चले जानेका कारण लड़ाईका छिड़ जाना ही था। यह एक न्यायसंगत और अत्यन्त सराहनीय काम होगा।

टाइप किये हुए अंग्रजी मसविदे (एस० एन० ५५५७) की फोटो नकलसे।

७२. सत्याग्रहियोंको सूचना[३]

जोहानिसबर्ग
मई २२, १९११

निम्नलिखित श्रेणियोंके सत्याग्रहियोंसे साग्रह निवेदन है कि वे अवैतनिक मन्त्री, बॉक्स नं०६५२२, जोहानिसबर्गके पतेपर अपने नाम तुरन्त भेज दें:

(क) जो युद्धसे पहले ट्रान्सवालमें तीन वर्ष रह चुके हैं, परन्तु जो सत्याग्रहके कारण अपने पंजीयन प्रमाणपत्र प्राप्त नहीं कर सके है।

(ख) जो अन्य प्रकारसे पंजीयनकी पात्रता तो रखते हैं, परन्तु सत्याग्रहके कारण जिनका पंजीयन नहीं किया गया है।

सरकारके साथ जो अस्थायी समझौता हुआ है उसके अनुसार सरकार इन लोगोंको पंजीयनके लिए एशियाई-पंजीयकके नाम अर्जी भेजनेकी अनुमति दे देगी; बशर्ते कि

  1. देखिए ई० एफ० सी० लेनके नाम गांधीजीके पत्र, पृष्ठ ३९-४० और ४८ तथा “पत्र : गृहमन्त्रीको", पृष्ठ ७७-७८ और परिशिष्ट ३ एवं ५।
  2. देखिए “पत्र : १० एफ० सी० लेनको", पृष्ठ ४७-४८ और “पत्र : गृह-मन्त्रीको", पृष्ठ ७७-७८ तथा परिशिष्ट ६ ।
  3. अनुमान है, इसका मसविदा गांधीजीने तैयार किया था।