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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


अर्जी आगामी ३१ दिसम्बरसे पहले भेज दी जाये।[१] कानून द्वारा निर्धारित उनके निर्वासनकी अवधिकी समाप्ति इसमें किसी तरह बाधक नहीं होगी।

जिन्होंने सन् १९०८ के कानून ३६ या १९०७ के कानून २ के मातहत संघर्षके दौरान पंजीयनके लिए किसी भी प्रकारकी अजियाँ दी हैं और जिनकी अजियाँ नामंजूर हो चुकी है, उनसे आग्रह है कि वे अपने नाम न भेजें।

जिन लोगोंको उपयुक्त वर्गोंके ऐसे सत्याग्रहियोंकी जानकारी हो जो इस समय भारतमें है वे अपने मित्रोंको आगामी ३१ दिसम्बरसे पहले अपने पंजीयनके लिए आवश्यक कार्रवाई करनेके लिए अविलम्ब लिख भेजें।

नाम भेजनेवाले निम्नलिखित बातें दें:

(क) अपना पूरा नाम ;

(ख) युद्ध-पूर्वके निवासकी अवधि या ऐसे ही दूसरे दावे;

(ग) जेलसे छूटनेका प्रमाणपत्र या अन्य कोई ऐसा प्रमाण जिससे उनका सत्याग्रही होना साबित हो।

(घ) अपने दावेका समर्थन करनेवाले कागजातपर आधारित या अन्य प्रकारके सभी सबूत;

(ङ) जिन्होंने सन् १९०८ में अपनी इच्छासे अर्जियाँ दी हों वे इसकी तफसीलें भेजें।

सुविधानुसार संघ ये प्रार्थनापत्र निःशुल्क तैयार करके पंजीयकके पास भेज देगा और इसके लिए कोई शुल्क नहीं लेगा। अगर जरूरी हुआ तो इसके बाद हरएक प्रार्थीको प्रार्थनापत्रका निर्णय होने तक की बाकी कार्रवाई अपने खर्चेसे और खुद ही करनी होगी। प्रार्थीको पंजीयकके फैसलेके विरुद्ध अपील करनेका सामान्य अधिकार होगा।

अ० मु० काछलिया
अध्यक्ष,
ब्रिटिश भारतीय संघ

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २७-५-१९११
  1. समझौतेको जिस रूपमें सरकारने स्वीकार किया था, वह रूप परिशिष्ट ५ और में दिया गया है । गांधीजीने भारतीय समाजकी ओरसे जो माँगें पेश की थीं उसके लिए देखिए लेनको लिखे गये पत्र, पृष्ठ ३९-४१, ४७-५० और ५८-६० ।