पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/१२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दिखाई है, तो ऐसी कोई आशंका नहीं होनी चाहिए कि एशियाई दक्षिण आफ्रिका में फिर सत्याग्रह आन्दोलन शुरू करेंगे।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २७-५-१९११
 

७७. सत्याग्रहियोंसे

हम प्रत्येक सत्याग्रहीका ध्यान श्री काछलियाके हस्ताक्षरोंसे युक्त विज्ञप्ति[१] की ओर आकर्षित करते हैं। जिन सत्याग्रहियोंके हक पहले छीन लिये गये थे और जो समझौतेके फलस्वरूप उबर गये हैं, उन्हें शीघ्र ही संघ द्वारा माँगे गये विवरण भेज देने चाहिए। यदि उनमें से कोई व्यक्ति भारतमें हो तो उसके पास भी खबर भेज देनी चाहिए। जिन्होंने लड़ाईके समय प्रार्थना-पत्र देकर काले कानून[२] अथवा कानून ३६[३] को मान लिया है, हम उनको अपने नाम सूचित न करनेकी सलाह देते हैं। यदि कोई व्यक्ति अर्जी भेज चुकनेकी बात छिपाकर अपना नाम भेजेगा तो उससे कौमकी तथा स्वयं उसकी भी हँसी होगी। यदि ऐसे किसी आदमीका प्रार्थनापत्र पंजीयकके पास पहले ही पहुँच चुका होगा तो तुरन्त पता चल जायेगा और प्रेषक पंजीकृत न हो सकेगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २७-५-१९११

७८.पत्र : हरिलाल गांधीको

टॉल्स्टॉय फार्म,
वैशाख वदी १४ [मई २७, १९११][४]


चि० हरिलाल,

तुम्हारा डेलागोआ-बेसे चलनेके पहलेका पत्र मिला। रामीको हम एकदम स्वदेशी संस्कार दें, यही अभीष्ट है। इसलिए तुमने चाकलेट न भेजनेका जो निर्णय किया, वह ठीक ही किया। फिर भी मैं तुम्हें यह चेतावनी देना चाहता हूँ कि ऐसे किसी विषय में इस तरह विचार मत करना कि "बापू ऐसा सोचते हैं इसलिए ऐसा करना

 
  1. देखिए "सत्याग्रहियोंको सूचना", पृष्ठ ८५-८६।
  2. सन् १९०७ का कानून २ (एशियाई पंजीयन कानून)।
  3. सन् १९०८ का (एशियाई पंजीयन संशोधन अधिनियम)।
  4. पत्रकी विषय-वस्तुसे स्पष्ट है कि यह १९११ की मईके मध्यमें हरिलालके आफ्रिका छोड़कर चले जानेके बाद लिखा गया । उस वर्ष वैशाख बदी १४ मई, २७ को पड़ी थी।