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सम्पूर्ण गांधी वाङमय
  1. . रोडेशियामें ट्रान्सवाल-जैसा ही कानून बन गया था, वह अस्वीकृत कर दिया गया।[१]
  2. . नेटालमें एक बहुत खराब परवाना कानून बन चुका था, वह भी अस्वीकृत किया गया।[२] इस अस्वीकृतिका कारण भी हमारा संघर्ष था। इसके सम्बन्धमें जिसे सन्देह हो, उसे चाहिए कि वह सम्राटकी सरकारने अस्वीकृति देते हुए जो कारण बताये हैं, उन्हें देख जाये।
  3. . सारे दक्षिण आफ्रिकामें ट्रान्सवाल जैसे कानूनका बनाया जाना रुक गया।
  4. . ट्रान्सवालमें अन्य बेहूदे कानून नहीं बन पाये।
  5. . ट्रान्सवालमें जो रेलवे विनियम खास तौरपर काले और गोरेका भेद रखकर बनाये गये थे, वे रद किये गये और उनकी जगह सवपर लागू हो सकनेवाला कानून बना।
  6. . सभी जानते हैं कि १९०७ में जो खूनी कानून बना था, वह भारतीय विरोधी कानूनके निर्माणको दिशामें प्रथम चरण था। उसीके खिलाफ भारतीयोंने डटकर लोहा लिया और स्थानीय सरकारके मनकी-मनमें ही रह गई।[३]
  7. . श्री हॉस्केनकी अध्यक्षतामें जो यूरोपीय समिति बनी, वह भी अन्यथा सम्भव नहीं थी।[४] मुमकिन है, इस समितिसे हम लोगोंको दूसरी बातोंमें भी मदद मिले।
  8. . इसके सिवा, अनक गोरोंकी सहानुभूति, और प्रीति प्राप्त हुई है।
  9. . भारतीय समाजकी प्रतिष्ठा बढ़ी है और जो पहले हमारा तिरस्कार करते थे, वे अब हमें सम्मान देने लगे हैं।

पड़ेगा। (देखिए. खण्ड ३, पृष्ठ २८६-१०)। वस्तुत: दिसम्बर, १९०२ में गांधीजी दक्षिण आफ्रिका विशेष- रूपसे परवानेकी समस्यापर तत्कालीन उपनिवेश मन्त्री श्री चैम्बरलेनसे बात करनेके लिए ही लौटे थे। श्री चैम्बरलेन उस समय नेटालके दौरेपर आये हुए थे। (देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ४७५) नेटाल कांग्रेस द्वारा अनवरत आन्दोलनके फलस्वरूप सरकारने २४ नवम्बर, १९०९ को एक कानून बनाकर अपीलका अधिकार दे दिया। साथ ही १८९७ के परवाना कानूनमें एक संशोधन (१९०९ का अधिनियम २२) द्वारा परवानोंकी मामले में टाउन कौंसिलोंके फैसलेके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालयमें अपीलका अधिकार प्रदान किया। देखिए खण्ड १०, पृष्ठ १०४ ।

  1. देखिए खण्ड ८, पृष्ठ २५७-५८, ३१५-१६ तथा ३२८ और खण्ड ९, पृष्ठ २४५ ।
  2. सन् १९०८ में दो विधेयकोंकी घोषणा की गई थी, जिनका उद्देश्य एशियाई व्यापारियोंको नये परवाने जारी करना बन्द करना, और जिनके पास पुराने परवाने थे उनसे १० वर्षकी अवधिमें परवाने वापस ले लेना था। देखिए खण्ड ८, पृष्ठ २१३-१४, २२९ और २३०-३१ । इस कानूनको साम्राज्य-सरकारने स्वीकृति नहीं दी। देखिए खण्ड ९, पृष्ठ ४२०।
  3. सबसे पहला पंजीयन कानून, जिसके विरुद्ध भारतीयोंने पहली बार संगठित रूपसे आन्दोलन किया था, १९०६ का एशियाई कानून संशोधन अध्यादेश था (खण्ड ५, पृष्ठ ४११-१३ और ४३०-३४)। यह अध्यादेश २२ अगस्त १९०६ को गज़टमें प्रकाशित हुआ था। उस समय तक ट्रान्सवालमें उत्तरदायी सरकारकी स्थापना नहीं हुई थी। गांधीजीने स्वयं १९०६ में लन्दन जानेवाले गांधी-अली शिष्टमण्डलको सत्याग्रहकी पहली लड़ाई बताया है। देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ३१५।
  4. भारतीयोंके आन्दोलनसे सहानुभूति रखनेवाले यूरोपीयोंकी समिति १९०८ में अल्बर्ट कार्टराइट द्वारा स्थापित की गई थी जो उस समय “ ट्रान्सवाल लीडर" के सम्पादक थे। श्री विलियम हॉस्केन इसके अध्यक्ष थे।