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९५. पोलकका कार्य


श्री पोलकको लन्दन पहुँचे अभी बहुत अरसा नहीं हुआ है,[१] परन्तु इस बीच उन्होंने भारी काम उठा लिया है। वे कई सज्जनोंसे मिल चुके हैं और उन्होंने “लीग ऑफ़ ऑनर"[२] की सभामें तथा अखिल भारतीय मुस्लिम लीग द्वारा आयोजित एक सम्मेलनमें भाषण दिये हैं। विलायतकी (द. आ० वि० भा०) समितिकी ओरसे जो निवेदन उपनिवेश-सचिवको भेजा गया था, उसका मसविदा श्री पोलकने ही तैयार किया था। इस निवेदनमें कामकी सभी बातोंका जिक्र है।[३] फ्रीडडॉर्पके बाड़ोंके प्रश्नका यथोचित निरूपण किया है और स्वर्ण अधिनियमके परिणामकी ओर भी [सरकारका] पर्याप्त रूपसे ध्यान आकृष्ट किया है। इससे स्पष्ट है कि श्री पोलक जहाँ कहीं भी बैठे हों, एक ही कार्य में तल्लीन हो जाते हैं। उन्हें दक्षिण आफ्रिकाके प्रश्नके अतिरिक्त और कोई प्रश्न सूझता ही नहीं। यह कोई ऐसी-वैसी बात नहीं है। मनुष्य अपने कर्तव्यमें लीन हो जानेपर ही उसकी साधना कर सकता है। इस नियमको उन्होंने हृदयंगम कर लिया है और वे उसीके पालनमें तन्मय रहते हैं। अगर भारतमें ऐसे अनेक व्यक्ति पैदा हो जाये तो भारत शीघ्र ही मुक्त हो जाये। श्री पोलक अपने कर्तव्यका पालन करके मानो हम सबको हमारे कर्तव्यकी याद दिला रहे है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन,१-७-१९११

९६. जोहानिसबर्गको चिट्ठी[४]

श्री पोलकका पत्र

श्री पोलकके विलायत पहुँचने के पश्चात् हमें उनके दो पत्र मिले हैं। वे लिखते है कि उन्होंने न्यायमूर्ति अमीर अलीसे[५] मुलाकात की है; इंडिया आफिसके श्री गुप्तेसे

 
  1. श्री पोलक १ मई, १९११को जोहानिसबर्गसे रवाना हुए थे और उसी महीनेके तीसरे सप्ताहमें लन्दन पहुंचे थे।
  2. दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंकी स्थितिके सम्बन्धमें ।
  3. देखिए परिशिष्ट ८ ।
  4. देखिए खण्ड १०, पृष्ठ ११४, पा०टि० १ ।
  5. न्यायमूर्ति सैयद अमीर अली (१८४९-१९२८); सी० आई० ई०, वैरिस्टर, कलकत्ता उच्च न्यायालयके न्यायाधीश, १८९०-१९०४, सन् १९०९में प्रीवी कौंसिलकी न्याय-समितिके प्रथम भारतीय सदस्य हुए; दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिके भी सदस्य रहे और अखिल भारतीय मुस्लिम लीगकी लन्दन शाखाके अध्यक्ष थे; स्पिरिट ऑफ इस्लाम तथा मुस्लिम कानूनपर अनेक पुस्तकोंके रचयिता ।