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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


कसौटी चाहते हो, तो वह तुम्हें मेरे देनेसे नहीं मिलेगी। अनुकूल समय आयेगा, तो आप मिल जायेगी। हम अपने कर्तव्यमें तत्पर रहें, इतना ही काफी है।

उतरने में किसीको कोई अड़चन होगी, ऐसा लगता तो नहीं है, फिर भी मैंने दफ्तरको[१] आवश्यक सूचनाएँ दे रखी हैं।

मोहनदासके आशीर्वाद

[पुनश्चः]

आशा है अगले सप्ताह तुम्हारे हाथमें ट्रस्टडीडकी नकल पहुँच जायेगी, वह केवल मसविदा है।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डबल्यू० ५०९१) से ।

सौजन्य : श्रीमती राधाबेन चौधरी ।।

१०६. पत्र : हरिलाल गांधीको

[लॉली]
आषाढ़ वदी० [जुलाई २५, १९११][२]

चि० हरिलाल,

देशसे तुम्हारा पत्र आना चाहिए था। चि० छगनलालसे तुम मिले थे और वे यहाँ आ भी गये। ऐसा मान लेता हूँ कि तुम्हारा पत्र अगली डाकसे आयेगा।

छगनलाल समाचार लाये हैं कि पूज्य रेवाशंकरभाईने[३] तुम्हें बंबईमें किसी कमर्शियल क्लासमें जाने अर्थात् व्यापारकी सलाह दी और अहमदाबादमें रहनेकी बातको नापसंद किया। उसने यह भी बताया है कि वह वहाँसे चला तबतक तो तुम अहमदाबादमें रहनेके ही पक्ष में थे। मेरे विचारमें अभी अहमदाबाद ही ठीक है। हमारा लक्ष्य वहाँ ज्यादा अच्छी तरह पूरा होता है। अहमदाबादमें शायद अंग्रेजी सीखनेकी सुविधा कुछ कम मिले, किंतु गुजराती, संस्कृत आदिका अभ्यास अहमदाबाद में ठीक हो सकेगा। मुझे तो बम्बई बिलकुल नहीं भाता। फिर भी तुम्हें जो ठीक जान पड़े, सो करना।

चंचीके पत्रसे मालूम होता है कि मणिलाल[४] सख्त बीमार है। यदि उसका विचार यहाँ आनेका हो, तो उससे कहना कि आ जाये । बली और वह दोनों ही आ सकते हैं। क्षय रोगके लिए खुली हवा अच्छी होती है। किंतु सादी खुराक ही मुख्य है। चंचीको लिखना कि वह मेरे पत्रोंकी नियमित प्रतीक्षा न करे। इस समय मेरे ऊपर बहुत बोझ है। मैं जोहानिसबर्ग केवल सोमवारको जाता हूँ। सुबह १० बजे तक फार्मपर शारीरिक मजदूरी.१ से ४-३० तक पाठशाला, ५-३० पर भोजन और रातको दफतरके

 
  1. एशियाई पंजीयकको लिखा गया यह पत्र उपलब्ध नहीं है ।
  2. पत्रके पहले अनुच्छेदमें छगनलाल गांधीके पहुँच चुकनेका उल्लेख है । वे दक्षिण आफ्रिका १९११ में पहुँचे थे। उस वर्ष आषाढकी अमावस्याको जुलाईकी २५ तारीख पड़ी थी।
  3. बम्बईके श्री रेवाशंकर जगजीवन झवेरी, जो डॉ० प्राणजीवन मेहताके भाई थे।
  4. मणिलाल लक्ष्मीचन्द अडालजा; हरिलालके साद; बलीवेनके पति ।