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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


ही आ पहुँचा और उसने उन्हें रोक लिया। ये लोग फ्रीडडॉपैसे कैनेडा तक पाँच मील इस इरादेसे दौड़ते आये थे कि उन्हें डिब्बेमें जा घेरेंगे। दूसरे लोग उन्हें फोर्ड्सबर्ग स्टेशनपर मिले। ऐसे निश्चयके सामने श्री कैलेनबैक क्या कर सकते थे? वे लाचार हो गये। सत्याग्रह (प्रेम) और धरनेकी एकबार फिर जीत हुई। श्री कैलेनबैक शीघ्रतासे पादरी फिलिप्सके भवन जा पहुंचे। इमाम अब्दुल कादिर बावजीरने सभापतिका आसन ग्रहण किया। थोडेसे चने हए शब्दोंमें उन्होंने श्री कैलेनबैककी सेवाओंका वर्णन किया जिसके बाद श्री थम्बी नायडूने यह अभिनन्दन पत्र पढ़ा :

कैटोनीज़ क्लबकी तरफसे श्री ईस्टनने उनको कार्लाइलके सभी ग्रन्थ चाँदीसे अलंकृत एक सुन्दर मंजषामें रखकर भेंट किये और हिन्दू संघकी तरफसे श्री मुरारजीने इसी तरहकी एक मंजूषामें उन्हे रस्किनके ग्रन्थ भेंट किये। इसके बाद श्री कैलेनबैकने अपने जवाबमें कहा कि जिन मित्रोंने मेरा इतना बड़ा सम्मान किया, मेरे खयाल किसी भी प्रकार मेरे ऋणी नहीं है। ऋणी तो मैं खुद हूँ। पाँच वर्ष तक चलते वाले इस संघर्ष में मैं जो-कुछ कर पाया वह मेरा सौभाग्य था। और मैंने जो कुछ किया सो अपने ही लिए। मैं वास्तवमें यही मानता हूँ कि इस संघर्षसे मेरा बड़ा हित हुआ है। इसकी समाप्तिपर मैं अपने-आपको बेहतर और पहलेसे ज्यादा ताकतवर महसूस करता है। श्री कैलेनबैकने अपने श्रोताओंको बताया कि इसमें कोई सन्देह नहीं है कि इस लड़ाईके कारण ही वे अपने कितने ही पूर्वग्रहों और कमजोरियोंको जीत पाये है। और यदि लड़ाई फिर कभी शुरू हुई तो उनसे जो-कुछ भी बन पड़ेगा वे फिर करेंगे, क्योंकि उनका विश्वास था कि इसमें वे जो-कुछ करेंगे उससे वे फायदेमें ही रहेंगे। इन उपहारोंके लिए एक बार पुनः धन्यवाद देकर उन्होंने करतल-ध्वनिके बीच अपना आसन ग्रहण किया। श्री काछलिया उपस्थित नहीं हो सके। उनके एक मित्र बीमार थे। उन्हें देखने के लिए वे वार्मवास गये थे। श्री रिच, श्रीमती वॉगल, कुमारी श्लेसिन और श्री आइजकने मंचपर आकर अध्यक्षकी बातोंका समर्थन किया। स्टेशनपर श्री कैलेनबैकको विदाई देनेके लिए यूरोपीय मित्रोंके अलावा भारतीयोंकी भी एक खासी प्रातिनिधिक भीड़ थी। अनुभव पाने, अपने जीवनको और भी सादा बनाने और अपनेको कसनेके विचारसे इस बार श्री कैलेनबैक, रेल द्वारा तीसरे दर्जेमें

१. देखिए “मानपत्र : श्री कैलेनबैकको", पृष्ठ १२६-१२७ ।

२. मार्टिन इंस्टन; क्विनके बाद चीनी संघके अध्यक्ष हुए । वे इसके पहले भी कार्यवाहक अध्यक्ष रह चुके थे। जब गांधीजीने संघीय प्रवासी विधेयककी प्रजाति-भेद सम्बन्धी धाराओंके विरुद्ध आपत्ति की तो उसमें ये भी शामिल हो गये; देखिए खण्ड १०, पृष्ठ ५१०।

३. गैबिएल आई० आइजक; इंग्लैंडवासी यहूदीजो जौहरीका धन्धा करते थे। ये जोहानिसबर्ग निरामिष उपाहारगृहसे सम्बन्धित थे और शाकाहारका प्रयोग भी कर रहे थे। कुछ दिनों तक फीनिक्स आश्रमके सदस्य भी रहे थे, और इंडियन ओपिनियनके ग्राहक बनाने और उसके लिए विज्ञापन जुटानेके निमित्त अक्सर दौरा किया करते थे । वे गांधीजी तथा इस पत्रका काम करनेको बरावर तयार रहते थे। जून सन् १९०९ में गांधीजीने इन्हें हेलागोआ-बेके सत्याग्रहियोंकी सहायता करनेके लिए भेजा था। देखिए खण्ड ९, पृष्ठ २ और २४७ । सन् १९१३ की “महान् कुच" में वे जेल भी गये थे।