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पत्र : डॉक्टर प्राणजीवन मेहताको



भाई मणिलाल गत सोमवारको डर्बन पहुँचे। कल (सोमवार) उन्होंने डर्बन छोड़ा है। और कल [बुधवार] वे यहाँ (फार्मपर) आ पहुंचेंगे। फीनिक्ससे उनका पत्र आया था जिसमें उन्होंने सूचित किया है कि उन्हें फीनिक्स पसन्द है। छगनलालने भी ऐसा ही लिखा है। अब देखें, यहाँ क्या होता है।

कांग्रेसका अध्यक्ष बननेके लिए मुझे निमन्त्रण आया है। यह किसकी तरफसे आया है यह ठीकसे समझमें नहीं आया। तार नेटाल कांग्रेसके नाम था। उसने तो तार कर भी दिया कि मैं जा सकूँगा। मैने व्यक्तिगत तार किया है कि [अध्यक्ष बनने में ] यदि मेरी स्वतन्त्रताका निर्वाह हो और मेरी जरूरत खास तौरसे मानी जा रहो हो तभी मझ बुलाया जाय, अन्यथा मुक्त हो रखा जाय। इस तारको आ लगभग १२ दिन हो गये, अभीतक कोई जवाब नहीं आया। इससे मैं अनुमान करता है कि कलकत्तसे आया हआ तार निमन्त्रण नहीं था, केवल पच्छा-मात्र थी; अथवा मेरी शर्त ठीक न लगी हो।

स्थायी रूपसे मेरे जल्दी ही वहाँ [भारत] आ जाने के सम्बन्धमें आपका बड़ा आग्रह है, यह मैं जानता हूँ। मुझे भी यह बात जंचती है और मैं यहाँसे मुक्त होते ही वहाँ आ जाऊँगा। किन्तु यहाँकी व्यवस्था कर लेनेकी जरूरत भी तो दिखाई दे रही है। अतः अकालके अवसरपर काम करने पहुँच सकूँ यह सम्भव नहीं जान पड़ता। मैं जानता हूँ कि अकाल अत्यन्त भयंकर पड़ा है और समझता हूँ कि यह देरसे आनेवाली बरसात कई लोगोंके लिए किसी कामकी नहीं है।

आप ऐसा न मानें कि मैं दुनिया-भरकी सेवा करनेके मोह-पापमें पड़ गया हूं। मैं भली-भाँति समझता हूँ कि मेरा कार्य तो हिन्दुस्तानमें ही है, सो भी गुजरातमें और सच कहें तो काठियावाड़में।।

'इंडियन ओपिनियन में अनेक अच्छे लेखादि निकलते रहते हैं और मुझे तो कई बार ऐसा लगता है कि इसमें जो-कुछ प्रकाशित होता है उसका पूरा सदुपयोग नहीं हो पाता। कुमारी स्मिथके पत्र नीरस हुआ करते हैं यह भी सच है पर उन्हें बन्द कर देनेकी इच्छा नहीं होती। उसकी भावना निर्मल है। उसे मैं पैसा भी नहीं देता। पैसा देना तो मैं जब विलायतमें था तभी बन्द कर दिया गया था। परन्तु कुमारी स्मिथने स्वयं ही बिना पारिश्रमिक लिखते रहनेकी इच्छा प्रकट की थी। मैने यह स्वीकार कर लिया। उसके भेजे हुए अनेक पत्र तो मैं छपनेके लिए देता ही नहीं हूं। पिछले महीने में ही मैंने एक पत्र रद किया था। इससे उसे कुछ बुरा

१. मणिलाल डॉक्टर।

२. उपलब्ध नहीं है।

३. सन् १९०९ में जय गांधीजी लन्दन गये थे तब वहाँ उन्होंने कुमारी ए०ए० स्मियसे इंडियन ओपिनियनके लिए नियमपूर्वक लिखनेको कहा था। वह ऑब्जर्वरके नामले लन्दनकी चिट्ठी" लिखा करती थीं। बादमें आर्थिक कारणोंसे जब उनका यह स्तम्भ बन्द करनेकी बात सोची गई तब पोलकने यह कह कर विरोध प्रकट किया कि यही एक ऐसा स्तम्भ है जो सत्याग्रहसे अलग विषय-वस्तु देता है, और साथ ही बाहरी दुनियाकी कुछ जानकारी भी। (देखिए खण्ड ९, पृष्ठ ४३०)। गांधीजीने पोलकके सुझावके अनुसार कुमारी स्मिथसे बात की होगी।

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