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तीन पौंडी कर


पर बहस होती रहती है जिनके बारेमें मेरे अपने अलग विचार हैं और मैं उनपर काफी दढ़ हूँ। मैं यह बखूबी जानता हूँ कि अपनी उन रायोंको छिपाकर मैं अध्यक्ष पदको सुशोभित नहीं कर सकता था। मैं यह भी ठीक तौरसे जानता हूँ कि यदि में कांग्रेसके मंचसे अपने इन विचारोंको व्यक्त करने बैलूं तो इतना ही नहीं कि मेरे विचार कांग्रेसके नेताओंको स्वीकार नहीं होंगे, बल्कि वे उनको एक गलत स्थितिमें डाल दे सकते हैं। और यह मुझसे होनेका नहीं। मैं यह भी जानता हूँ कि सम्भवतः लोग मेरे विचारोंको रिपक्व और अपर्याप्त तथ्योंपर आधारित मानेंग और यह कि शायद में ही बादमें] उनको बदल डालूं। इन तीन बातोंमें से किसीके भी बारेमें मेरे अपने विचार चाहे कितने ही भिन्न क्यों न हों, पर मेरा मत है कि मुझसे मतभेद रखनेवालोंको अपने विचारोंके प्रतिपादनका पूरा-पूरा और वाजिब हक है। वैसे यह कार्य मुझको भी उतना ही प्यारा है जितना कि कांग्रेसको, लेकिन मुझे लगता है कि फिलहाल में भारतीयोंके हितमें प्रयत्नशील रहकर ही उस कार्यमें अधिकसे-अधिक योग दे सकता हूँ, और यदि मुझे भारत जानेका सुयोग प्राप्त हो तो स्वतन्त्र रूपसे ही अपने देशवासियोंकी सेवा करना सबसे अच्छा रहेगा। और यदि संगठनसे अलग रहना सम्भव न हुआ तो उसमें कोई पद ग्रहण किये बिना आप-जैसे नेताओंके, जिनसे मुझे इस कार्यकी प्रेरणा मिली है, पथ-प्रदर्शन में ही देशका काम करूँगा। मैं जानता हूँ कि कई बातोंमें हमारे बीच मतभेद हैं, फिर भी आपके और आपके चरित्रके प्रति, जैसा मैंने उसे चित्रित कर रखा है, मेरा आदर-भाव पूर्ववत् है और बना रहेगा।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

'गांधीजीकी लिखावटमें की गई शुद्धियों तथा उनके हस्ताक्षरोंसे युक्त टाइप की हुई अंग्रेजी प्रति (जी० एन० ३८०४) की फोटो-नकलसे।

१४७. तीन पौंडी कर'

हालकी घटनाओंसे पता चलता है कि १८९५ के अधिनियम संख्या १७ के अन्तर्गत किस व्यक्तिको तीन पौंडी कर देना पड़ेगा, इस प्रश्नपर बहुत भ्रम फैला हुआ है।

१. यह लेख तथा “विश्वासघात", (पृष्ठ १८१-८२), सम्भवत: देवराघुलु नामक एक भारतीयपर ३ पौंडी करकी बकाया रकम न चुकानेके आरोपमें समन्स जारी किये जानेकी घटनासे प्रेरित होकर लिखे गये थे। जव मजिस्ट्रेटका ध्यान १९१० के अधिनियम १९ को धारा ३ की ओर दिलाया गया तब उसने रकम-अदायगीका हुक्म स्थगित कर दिया और मुकदमेकी सुनवाई अनिश्चित कालके लिए रोक दी। गिरमिटिया-करार करनेवाले अन्य लगभग २१ भारतीयोंपर भी ऐसे ही समन्स जारी किये गये थे । १६ सितम्बर, १९११ को पारसी रुस्तमजीके घरपर भारतीयोंकी एक सभामें ३ पौंडी कर-विरोधी संघ"की स्थापना हुई, जिसका उद्देश्य इस करको रद करानेके लिए संघर्ष करना था। देखिए इंडियन ओपिनियन, ९-९-१९११ और २३-९-१९११ तथा परिशिष्ट ९ भी।।

२. सन् १८९३ में नेटाल जब स्वशासित उपनिवेश बना, उसके शीघ्र बाद ही यह अधिनियम बनाया गया था; देखिप खण्ड ५, पृष्ठ ३५३ । बोअर युद्धके बाद इस करके प्रति भारतीयोंकी प्रतिक्रियाके लिए देखिए खण्ड १, पृष्ठ १७९-८१, २१५-१७ और २१७-३२ खण्ड २, पृष्ठ ६६, खण्ड ५, पृष्ठ ३२७-२८ ।