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अभिनन्दनपत्र: श्रीमती वॉगलको


ज्यादा बालक आयें। उससे मेरा काम बहुत अधिक बढ़ जायेगा और बालकोंके चरित्रकी ओर जो ध्यान देना चाहिए वह मैं नहीं दे पाऊँगा।

मोहनदासका वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ५६३२) से।

सौजन्य : श्री सी० के० भट्ट।

१५०. अभिनन्दनपत्र : श्रीमती वॉगलको[१] '

जोहानिसबर्ग
[नवम्बर १५, १९११]

प्रिय श्रीमती वॉगल,

आपने ट्रान्सवाल भारतीय महिला संघकी जो बड़ी-बड़ी सेवाएँ की है उनके लिए अपनी कृतज्ञताकी भावनाओंको यदि हम सार्वजनिक रूपसे प्रकट न करें तो यह हमारी कृतघ्नता होगी। इस शानदार बाजारका आयोजन तो आपकी उन सभी सेवाओंका मुकुट है।

संकटकी उस काली घड़ीमें, जब हमारे आत्मीय बन्धुगण कारावासमें थेआपने और कुमारी श्लेसिनने अपने अथक उत्साहके द्वारा हमें अपने दुःख भुलाने में बहुत मदद दी।

आप वास्तव में हमारी बहन सिद्ध हुई है। और जबतक यूरोपीय समाजमें आपजैसी महिलाएं विद्यमान हैं, हम साम्राज्यके इन दो भागोंके परस्पर शान्तिपूर्वक और मित्रतासे रह सकनेकी आशा नहीं छोड़ सकते।

हम अनुरोध करते हैं कि इसके साथ हम आपकी सेवामें जो भेंट[२] अर्पण कर रहे हैं आप कृपया उसे अपने प्रति हमारी आदर-भावनाका एक तुच्छ प्रतीक मानकर स्वीकार करें।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २५-११-१९११

  1. १. जोहानिसबर्गकी चौदह महिलाओं द्वारा हस्ताक्षरित इस अभिनन्दनपत्रका मसविदा अनुमानत: गांधीजीने तैयार किया था। आयोजनमें भारतीय महिला संवकी ओरसे अतिथियोंका स्वागत भी उन्होंने ही किया था और फिर “श्रीमती वॉगलके नेक कार्योंके लिए उनकी समुचित सराहना करनेके बाद " उपर्युक्त " अभिनन्दनपत्र पढ़ा और श्रीमती बॉगलको भेंट करनेके लिए उसे श्रीमती हॉस्केनको दे दिया. ..." अभिनन्दनपत्रके लिए कृतज्ञता प्रकट करते हुए श्रीमती वॉगलने अन्य बातोंके अतिरिक्त यह भी कहा कि आयोजनसे प्राप्त रकमका (देखिए “ पत्रः मणिलाल गांधीको", पृष्ठ १८४) उपयोग शिक्षणकी उन्नतिमें किया जायेगा और इससे “अनाकामक प्रतिरोध संवर्षके वीरगति-प्राप्त दो सेनानी" नागप्पन और नारायण सामीकी स्मृतिको स्थायी बनाया जायेगा । इंडियन ओपिनियन, २५-११-१९११ ।
  2. २. यह लेखनकार्य के लिए एक सुन्दर-सी डेस्क' थी।