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२०१
नया वर्ष

जब इस वर्षका आरम्भ हुआ था तब सत्याग्रहकी लड़ाई अपने विकटतम रूपमें थी। मार्चमें प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयक[१](इमीग्रेंट्स रिस्ट्रिक्शन बिल) प्रकाशित किया गया। इसका क्या हश्र हुआ था सो हमारे पाठकों को याद होगा।[२] इसके बाद जनरल स्मट्स और गांधीके बीच लम्बा पत्र-व्यवहार चला, और परिणामस्वरूप अप्रैल के अन्तमें गृह मन्त्री और भारतीय नेताओंके बीच निम्न समझौता[३]हुआ : १९०७का कानून ३[४]रद कर दिया जाये; आव्रजनके मामले में एशियाई और यूरोपीय प्रवासियोंके बीच कानूनी समानता हो; वर्तमान प्रान्तीय अधिकार बरकरार रखे जायें; छः उच्च शिक्षाप्राप्त एशियाइयोंको ट्रान्सवालमें प्रवेश मिले; सत्याग्रहियोंका पंजीयन किया जाये; और बन्दियोंको रिहा किया जाये । अब यह संसदपर निर्भर है कि वह सरकारके एक जिम्मेदार मन्त्री द्वारा दिये गये वचनोंकी पुष्टि करती है या नहीं। इन मामलों में पूरे न्यायपूर्ण व्यवहारकी आशा की जाती है; और ऐसा ही होना चाहिए। अन्यथा कोई स्थायी समझौता सम्भव नहीं है ।

सरकारके साथ गत अप्रैलमें किये उसके समझौते के बाद स्वर्ण-कानून[५]और कस्बा अधिनियम[६] (टाउनशिप्स ऐक्ट) को अमल में लाये जानेसे एक गम्भीर स्थिति उत्पन्न हो गई है। उनका असर यह हो रहा है कि एशियाई दुकानदार बरबाद हो रहे हैं और ट्रान्सवालमें रहनेवाले अधिकांश भारतीयोंकी, जो फेरीवाले हैं, जीविकाका साधन खतरे में पड़ गया है ।

आगामी वर्षके सम्बन्धमें दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय समाजको आशा भी है और आशंका भी। इसका कारण है । प्रवासी विधेयकसे, जो वर्षके आरम्भ में संसदमें लाया जायेगा,[७] दक्षिण आफ्रिका संघके प्रत्येक भारतीयका सम्बन्ध है । अधिवासी भारतीयोंके अधिकारोंका संरक्षण होना ही चाहिए, मूल्य जो भी चुकाना पड़े। और एक मुनासिब संख्या में शिक्षित लोगोंको संघमें प्रवेश मिलना चाहिए । यह बात बहुत हद तक भारतीयोंके ऊपर निर्भर करेगी कि वे उस भूमिमें, जिसमें वे जन्मे हैं अथवा जिसे उन्होंने अपना मान लिया है, अपने अधिकार और सम्मानको सुरक्षित किये रहें। लोगोंको उनके स्थापित अधिकारों और रीति-रिवाजोंसे वंचित करनेके लिए किये गये किसी भी प्रयत्नका सामना दृढ़तापूर्वक करना होगा। जिन बातोंका सम्बन्ध स्वयं समाजके अस्तित्वसे है, उनपर किसी प्रकारका समझौता बरदाश्त नहीं किया जा सकता । जिस प्रकार ट्रान्सवालके भारतीयोंने पाँच साल तक कठोर संघर्ष किया है, उसी प्रकार यदि दूसरे प्रान्तोंको भी वैसी ही लड़ाई लड़नी पड़े तो

 
  1. देखिए खण्ड १०, परिशिष्ट ८ ।
  2. यह विधेयक पेश नहीं किया गया । देखिए परिशिष्ट २ ।
  3. देखिए ई० एफ० सी० लेनको लिखे गये पत्र (पृष्ठ ३९-४१ और ४७-५० ) तथा परिशिष्ट ४
  4. ४. यह १९०७ का कानून २ होना चाहिए ।
  5. और
  6. ६.देखिए परिशिष्ट २१ ।
  7. इस विधेयकका मसविदा संसदके आगामी अधिवेशनके लिए फिरसे तैयार किया जा रहा था; देखिए पृष्ठ १९७, पाद-टिप्पणी १ ।