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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पीछे नहीं हटना चाहिए। अन्यथा भविष्य में उनके तथा उनके बच्चोंके लिए दक्षिण आफ्रिका संघ में नागरिकता प्राप्त करनेका द्वार सदैवके लिए बन्द हो जायेगा ।

कुछ और भी महत्वपूर्ण बड़े प्रश्न हैं जिन्हें हाथमें लेना जरूरी है, जैसे नेटालमें भूतपूर्व गिरमिटिया भारतीयोंके ऊपर लगाया गया तीन पौंडी वार्षिक परवाना शुल्क । भारतीय व्यापारियों और दूकानदारोंपर कभी-कभी यह आरोप लगाया जाता है कि जिन बातोंका उनपर सीधा असर पड़ता है उन्होंमें वे इतने व्यस्त रहा करते हैं कि उनके पास अपने निर्धन भाइयोंकी मुसीबतोंकी तरफ ध्यान देनेका समय ही नहीं होता । यदि इस आरोप में रत्ती भर भी सचाई हो तो उनके लिए यह दिखा देनेका कि वे किस धातुके बने हैं यही अवसर है। जो लोग उससे प्रत्यक्ष रूपसे प्रभावित नहीं हैं उनके लिए इस अन्यायपूर्ण और क्रूर करको रद करवाने के रूपमें यह बात सिद्ध कर देनेका एक नायाब मौका भी है कि वे किसी ऐसे प्रयत्नमें अपनी शक्ति लगाने में सक्षम हैं जिसमें उनका जरा भी स्वार्थ नहीं है। ऐसा करके वे उन लोगोंकी कृतज्ञताके पात्र होंगे जो अपनी सहायता स्वयं करने में असमर्थ हैं; और ईश्वरकी अनुकम्पा उनका पुरस्कार होगी ।

हम अपने सभी पाठकोंके लिए मंगलमय नव वर्षकी कामना करते हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ३०-१२-१९११

१७०. अकाल

पश्चिमी भारत आजकल अकाल-ग्रस्त है। इस सप्ताह हम उसीसे सम्बन्धित समाचारोंको प्रमुखता दे रहे हैं।[१] दक्षिण आफ्रिकामें हमारी अपनी कठिनाइयाँ हैं, परन्तु भगवानको धन्यवाद है कि हमें क्रूर अकालका सामना नहीं करना पड़ा। दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंने अतीत में यह दिखा दिया है कि वे भूकम्प या अकालसे पीड़ित स्वदेशवासी भाइयोंको सहायता देकर[२]पनेको अवसरके अनुकूल सिद्ध कर सकते हैं। हमारे स्तम्भोंमें एक कोष आरम्भ किया गया है, जिसमें अबतक १०० पौंड- से ऊपर जमा हो चुका है । परन्तु हम समझते हैं, यह रकम उस विपुल धनराशिका एक अंश मात्र है जो दक्षिण आफ्रिका में एकत्रित की जा सकती है। मुस्लिम समाज

  1. समाचार में कहा गया था कि बम्बई सूबे में खाद्यान्न तथा चारेकी बहुत कमी हो गई है, और ऊपरसे काठियावाड़ में प्लेगका प्रकोप हुआ है। लगभग एक-तिहाई पशुओंको खिलाने-पिलानेके लिए सार्वजनिक चन्देकी आवश्यकता बताई गई थी और यह भी कहा गया था कि केवल अहमदाबाद जिलेके लिए ही १ लाख रुपये की राशि चाहिए। गांधीजीने अन्यत्र भी इस अकालका उल्लेख किया है, जिसके लिए देखिए “ पत्र : डॉ० प्राणजीवन मेहताको ", पृष्ठ १५५, १६१ और १७८ ।
  2. सन् १९०५ के उत्तर भारतके भूकम्पके बाद इंडियन ओपिनियन में, एक भूकम्प पीड़ित सहायता- कोष प्रारंभ किया गया था; देखिए खण्ड ४, पृष्ठ ४५८ और ४६७ ।