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जोहानिसबर्गेमें चेचक

निकट भविष्य में संघ-संसदका अधिवेशन होने जा रहा है और अब किसी भी दिन जिस मसविदेकी बात थी सो मसविदा और विधेयक दोनों प्रकाशित कर दिये जा सकते हैं ।[१]

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रति (जी० एन० ३७७१ ) की फोटो - नकलसे ।

१७४. जोहानिसबर्ग में चेचक

जोहानिसबर्गके अखबार चेचकके आतंकपूर्ण समाचारोंसे भरे पड़े हैं। हमें खेद- पूर्वक स्वीकार करना पड़ रहा है कि इसमें अपराध हमारा है । कुछ भारतीय बालकों- को चेचक निकल आई, यह तो कोई चिन्ताकी बात नहीं। किसी समाजमें आकस्मिक रूपसे रोगोंका फूट पड़ना सर्वथा सम्भव माना जा सकता है । परन्तु इन भारतीयोंने रोग फूटने की बातको दबा रखा, यह हमारा अपराध है । अब कुछ व्यक्तियोंके अपराधका फल सारे समाजको भुगतना पड़ेगा ।

प्रसन्नताकी बात यह है कि नेतागण रोगको उखाड़ फेंकनेमें डॉ० पोर्टरको[२] हार्दिक सहयोग दे रहे हैं । परन्तु यदि लोग नेताओंकी सुननेके लिए तैयार नहीं हुए और उन्होंने अपनी सहायता करनेका उन्हें अवसर ही नहीं दिया तो नेतागण भी कुछ नहीं कर सकेंगे ।

हमारा खयाल है कि समाजको उन्नति करनी हो तो उसे इस अपराधके लिए जिम्मेदार अपने व्यक्तियोंका ऐसा तीव्र विरोध करना चाहिए कि एशियाई पंजीयन अधिनियमका डटकर किया गया विरोध भी उसके सामने फीका पड़ जाये । सत्याग्रह- का प्रयोग घरमें भी उतना ही प्रभावशाली हो सकता है जितना बाहर । इतना अवश्य है कि घरमें उसका प्रयोग कहीं कठिन होता है । परन्तु सच्चा सत्याग्रही, कठिनाइयाँ कितनी ही भयंकर क्यों न हों, उन्हें देखकर विचलित नहीं होगा, न हो सकता है।

हमपर बहुधा आरोप लगाया जाता है कि हमारा रहन-सहन गन्दा है और रोगको छिपाने या अधिकारियोंको गुमराह करके धोखा देने में हम झूठ-सच अथवा उचित - अनुचितकी परवाह नहीं करते । इस बार बीमारीको छिपानेके कारण जोहानिस वर्गमें हमारे शत्रुओंको मौका मिल गया है । समाजको सावधान हो जाना चाहिए कि कहीं ऐसा न हो कि अपने आदमियोंकी बुराईकी ओरसे आँखे मींचकर[३]हम अपने-

 
  1. संघ- संसदका दूसरा सत्र जनवरी २६, १९१२ को प्रारम्भ होनेवाला था; विधेयकका पहला वाचन जनवरी ३० को हुआ था; देखिए इंडियन ओपिनियन, १३-१-१९१२ तथा ३-२-१९१२ ।
  2. डॉ० सी० पोर्टर, स्वास्थ्य चिकित्साधिकारी, जोहानिसबर्ग ।
  3. यहाँ मूल अंग्रेजीमें छपाईकी एक भूल थी, जिसे सुधार कर अनुवाद किया गया है ।